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समय की चक्रधर

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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समय की चक्रधर घूम-घूम कर,
नियति की हाथों का स्पर्श पाकर,
वही सुकोमल, कभी भाव बिहवल।
कभी अनेकों-कर्म बल से जुड़कर,
कभी अपनापन कुछ पाकर,
कभी कुछ खोकर।
पा लिया था एक सुघड़ अंतस,
बस बसना था एक सुंदर सा घर,
जहां शांति और, अटूट प्रेम था।
तभी झंझावात की, थपेड़ों ने,
बिखरा दिया उसकी स्वप्निल-
नीर का तिनका तिनका,
आश्रय हिन बना दिया-
उसे पंख हीन बना दिया।
किसी की बेसुरी चैन ने-
शायद उसे बेचैन बना ही दिया।
लेकिन आज भी उसे याद है-
फरियाद और आह है-
उसे देख कर अपराध बोध में-
खो जाता हूं उदासी देखकर।
वह और बेचैन होकर फिर-
बीते समय की चक्र में गुमसुम हो जाती है।
मुझे देख कर एक लंबी उच्छ्वास लिए,
करुण ऐकटक निहार वेदना पूरित नेत्रों से पुकार
कर जाती है।

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लेखक परिचय :-  नाम – ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)


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