विशाल कुमार महतो
राजापुर (गोपालगंज)
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बड़े प्यार से पापा ने डॉक्टर मुझे बनाया था
मेरे माँ ने मुझे अच्छे संस्कार सिखलाया था।
वो चार मैं अकेली थी, चीखी और चिलाई थी,
लेकिन उन दरिंदों को जरा रहम ना आई थी।
याद है मैं एक डॉक्टर थी, लाखो की जान बचाई थी।
पर न जाने बुरे वक्त पे मुझे न कोई बचाया था
बड़े प्यार से पापा ने डॉक्टर मुझे बनाया था
मेरे माँ ने मुझे अच्छे संस्कार सिखलाया था।
देख अब मानव के तन से मानवता ही चली गई,
कांप गईं मेरी रूह भी आग में जिंदा जली गई।
जब उन दरिंदों ने मेरे जिन्दे शरीर पे आग दिए,
हम तो वह तड़प-तड़प कर अपने प्राण त्याग दिए।
छोटी सी उम्र में माँ-बाबुल का जग में मान बढ़ाया था
बड़े प्यार से पापा ने डॉक्टर मुझे बनाया था
मेरे माँ ने मुझे अच्छे संस्कार सिखलाया था।
करना जब इंसाफ तुम तब न्याय का पर्दा हटा देना,
बिना सोचे समझे उनको फांसी पर लटका देना।
तोड़ देना अब ताला तुम उस संविधान के पेटी का,
फिरसे कोई जिस्म न सोचे माँ-बाबुल के बेटी का।
डॉक्टर बनकर मैंने न जाने कितनों का जान बचाया था।
बड़े प्यार से पापा ने डॉक्टर मुझे बनाया था
मेरे माँ ने मुझे अच्छे संस्कार सिखलाया था।
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