दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)
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मोमबत्तियां लेकर चलने से कुछ नही होता है।
क्या बताऊँ की आज हर पिता घर बैठा रोता है।।
ये वाकया पहला नही जो चुप होकर रह जाऊं मैं।
मरहम की उम्मीद नही जो सबकुछ सह जाऊं मैं।।
क्यों प्रशासन है मौन अब सुनेगा इनकी कौन?
अब हर गली का आवारा बनता जा रहा डॉन।।
क्या अब भी हम चुप रहने में विश्वास रखते है।
गर चाहे तो हम मिलकर क्या नही कर सकते है।।
पहले हुआ करता था रहना जंगल मे दरिंदों का।
मगर शहर अब भरा पड़ा कई ऐसे बाशिंदों का।।
जाने कितनी मासूमो को वहशियों ने लूटा है।
बेटी बचाओ का नारा तो लगता अब झूठा है।।
मां बहन की इज्जत करना बेटों को सिखाओ।
पढ़ाई के साथ घर मे एक पाठ ये भी पढ़ाओ।।
नारी होती है समाज व घर को स्वर्ग बनाने वाली।
हर रूप में तो रहती है ये इसकी बात निराली।।
वो अहिल्या सी निर्दोष मां सीता सी पावन है।
वो रंगोली का रंग तो झूमता हुआ एक सावन है।।
वो लक्ष्मीबाई है झांसी की जिसने अंग्रेजों को हताश किया।
वो जगत जननी है दुर्गा जिसने राक्षसों का विनाश किया।।
कभी बहन तो कभी ममता की मूरत नज़र आती है।
कभी गांव तो कभी शहर नज़र आती है।।
मैं करता हूँ प्रणाम उस मात्र शक्ति को,
मैं करता हूँ प्रणाम उस आदि शक्ति को।।
जिसमे मुझे भारत माँ की सूरत नज़र आती है।।
जिसमे मुझे भारत माँ की सूरत नज़र आती है।।
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लेखक परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है। गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।
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