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सुदामा को देखा है मैंने

रेशमा त्रिपाठी 
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश

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गरीब घरों के बच्चों की जब आँखें रोती हैं
तो उस वक्त मानों उनके पूरे बदन का
एक-एक अंग रोता हैं
उनके होठों की किलकारियों
में अक्सर अश्रु बहते देखा हैं
उनके नये–नये कपड़ों में
लकीरों की सिलवटों को खिंचते देखा हैं
उस वक्त जब वह तैंयार होते हैं
पांव के जूते भी अक्सर किसी मोड़ पर
मुँह फैलायें दिख ही जाते हैं
और पेट की आग तो दीमक सी चिपक जाती हैं
उनके मुस्कुराते चेहरों की सिलवटों में
उनके पढ़ने की जद्दो-जहद में
दो जून की रोटी को जोड़ते देखा हैं
उनके खेलों में अक्सर ईट, पत्थर को तोड़ते
किसी के जूते, चप्पल, प्लेट को घिसते देखा हैं
सुना हैं बच्चे मन से चंचल होते हैं
हाँ यकीनन
किसी गरीब बच्चें ने कोई सपना देखा होगा
कहते हैं बच्चों में भगवान होता हैं
लेकिन अक्सर..!
हालत से जूझते
हर गरीब बच्चों में सुदामा रूप को ही देखा है मैंने।।

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परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी 
निवासी :
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश


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