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स्वर्ग

रीतु देवी “प्रज्ञा”
(दरभंगा बिहार)

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प्रत्युष अपने माँ -पिताजी के साथ गंगिया गाँव में रहता है। उसके पिताजी गाँव के ही मध्य विद्यालय के शिक्षक हैं। वह अपने माँ-पिताजी का दुलारा लाल है। प्रत्युष बचपन से ही शरारती एवं मनमौजी है। वह अपने माँ-पिताजी के बातों पर ध्यान नहीं देता है। बिना बताए घर से कहीं भी चला जाता है। “बेटा कहीं जाते हो,तो मुझे बोल दो।” उसकी माँ समझाती है।
“मैं कहीं भी जाऊँ, आप इससे मतलब नहीं रखे।” प्रत्युष अपनी माँ की बातों पर ध्यान नहीं देता है। उल्टे गुस्सा कर दो-चार बातें अपनी माँ को सुना देता है। उसकी माँ अपने लाल के रूखे व्यवहार से चिंतित है। उसके माँ-पिताजी आपस में अक्सर बात करते हैं, “प्रत्युष का व्यवहार ठीक नहीं है। वह हमारे बुढापे का लाठी बनेगा कि नहीं?”
धीरे-धीरे समय का पहिया आगे बढता जा रहा है। प्रत्युष अभियंता बन गया है। उसकीशादी सुन्दर और सुशील लड़की रीया के साथ हो जाती है। लेकिन उसके व्यवहार में परिवर्तन नहीं होता है।
वह शादी के बाद पत्नी रीया के साथ अमेरिका चला जाता है। वहाँ जाने के बाद वह अपने माँ-पिताजी को भूल जाता है। वह उनसे नहीं मोबाईल से बात करता है नहीं मिलने जाता है।
रीया स्वभाव की अच्छी है। वह कभी-कभी सास-ससुर जी से मोबाईल से बात करके उनका आशीर्वाद लेती रहती है। वह प्रत्युष को भी उसके माँ-पिताजी से बात करने के लिए कहती है, “आप माँ-पिताजी से बात कर लिया कीजिए। उन्हीं के आशीर्वाद से आप यहाँ तक पहुंचे हैं।”
“उनका जो कर्तव्य था, सो उन्होंने किया। मुझे अपने तरीके से जीने दो। उनकी जीवनशैली मेरे स्तर की नहीं है। मैं उनसे मिलने नहीं जाऊँगा।” रीया पर गुस्सा कर बोलता और उसकी बातों पर कान नहीं देता है। रीया सोचती रहती, “इनको कब अक्ल आएगी कि माँ-पिताजी के चरणों में स्वर्ग है। उनके आशीर्वाद से संतान का जीवन हँसते-खेलते बीतता है।”
प्रत्युष कुछ दिनों से काफी परेशान है। उसके चेहरे पर चिंता की लकीर साफ-साफ दिख रही है। शाम में घर पर चिंतित और परेशान रहता है। “आप कुछ दिनों से परेशान लग रहे हैं।” रात में मेज पर भोजन परोसते हुए रीया ने पूछा।
“नहीं, कोई बात नहीं है।” प्रत्युष बोला।
रीया बोली, “बता दीजिए। बताने से मन हल्का हो जाएगा।”
रीया के जिद्द करने पर बताया, “आजकल मैं जो भी काम करता हूँ, उसमें सफलता नहीं मिलती। ऐसा बार-बार होने पर मुझे नौकरी से हाथ धोनी पड़ेगा। मैं क्या करूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा है।”
“आप माँ-पिताजी से बात कीजिए, उनके आशीर्वाद से ठीक हो जाएगा। “रीया उसको समझाया।
रीया के समझाने पर प्रत्युष अपने माँ-पिताजी से बात की। उन्होंने उसे ढेरों आशीर्वाद दिए। उनसे बात करने से उसका मन हल्का हो गया। वह अगले दिन कम्पनी प्रसन्नचित होकर गया। कम्पनी में सारा काम ठीक से किया। शाम को में घर आकर खुशी से उछलते हुए बोला, “मैंने सारे काम ठीक से किये।”
“माँ-पिताजी के आशीर्वाद के कारण आप ठीक हैं। इस बार आप छुट्टियाँ लेकर मेरे साथ माँ-पिताजी से मिलने घर चलेंगे। “रीया बोली।
“रीया ठीक है। “प्रत्युष ने भी सहमती जतायी।
कुछ ही दिन बाद प्रत्युष छुट्टी लेकर रीया संग माँ-पिताजी से मिलने घर आता है। “मुझे माफ कर दीजिए। मैं अपने रूखे व्यवहार के लिए माफी माँगता हूँ। मैं समझ गया हूँ कि आप दोनों के चरणों में ही स्वर्ग है। “वह माँ-पिताजी के चरणों पर गिरकर रोने लगता है। दोनों उसे गले लगा लेते हैं और खुश हैं कि उनका बेटा बदल गया है।
प्रत्युष रीया के साथ माँ-पिताजी पर ध्यान देने लगता है एवं सारी बातें साझा करता है। प्रत्युष को कम्पनी में तरक्की होती है। उसके जीवन में खुशियों के दीप जलने लगते हैं।

 

लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार


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