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बस यूं ही …

शरद मिश्र ‘सिंधु’
लखनऊ उ.प्र.

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इस तरह से चलो जिया जाए।
घाव दिल के सभी सिया जाए।
एक आंधी न हैं कई शायद,
हर तरफ दीप रख लिया जाए।
हम जुटाएं जरूर असि पर वह,
बंदरों को नहीं दिया जाए।
पथ निहारें न सदा शंकर का,
विष स्वयं भी कभी पिया जाए।
लांघने पर अवश्य दें उत्तर,
जुल्म की हद बना लिया जाए।
चाहता हूं गजल कहूं लेकिन,
भागता दूर काफिया जाए।
बन गए रूप का हिमालय वो,
चांद को भी गगन दिया जाए।
“सिंधु” वह चांद हारकर देगा,
रार नभ से चलो किया जाए

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लेखक परिचय :-  नाम – शरद मिश्र ‘सिंधु’
उपनाम – सत्यानंद शरद सिंधु
पिता का नाम – श्री महेंद्र नारायण मिश्र
माता का नाम – श्रीमती कांती देवी मिश्रा
जन्मतिथि – ३/१०/१९६९
जन्मस्थान – ग्राम – कंजिया, पोस्ट-अटरामपुर, जनपद- प्रयाग राज (इलाहाबाद)
निवासी – पारा, लखनऊ, उ. प्र.
शिक्षा – बी ए, बी एड, एल एल बी
कार्य – वकालत, उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ
सम्मान – सर्वश्रेष्ठ युवा रचनाकार २००५ (युवा रचनाकार मंच लखनऊ), चेतना श्री २००३, चेतना साहित्य परिषद लखनऊ, भगत सिंह सम्मान २००८, शिव सिंह सरोज स्मारक संस्थान सम्मान २०१९
संपादन – देश की आराधना में, काव्य संकलन, समय सारंग साप्ताहिक २००५, नवोन्मेष साप्ताहिक, शर संधान साप्ताहिक, केसरिया साप्ताहिक
कृतियां – जयनाद, प्रकाशन वर्ष १९९६, देखो नाविक पार नदी के, गीत संग्रह २०१८
सहयोगी संकलन – काव्याकाश, चेतना के गीत, वर दे वीणा वादिनी आदि के सहयोगी रचनाकार
दायित्व – उपाध्यक्ष लखनऊ महानगर अखिल भारतीय साहित्य परिषद, राष्ट्रीय सह संयोजक – नवोदित साहित्यकार परिषद


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