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चार दिन की

सुभाष बालकृष्ण सप्रे
भोपाल म.प्र.

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चार दिन की जिंदगी,
तू अधिक न ज़ोड,
झूठे हैँ नाते रिश्ते,
इन्हेँ जल्दी से छोड,
रास्ते तो हैँ कठिन,
आयेंगे इसमेँ कई मोड,
चट्टानेँ हैँ तेरे रास्ते,
इन्हेँ जल्दी से फोड,
हर कदम हैँ, दुश्मन,
बाहेँ तू इनकी म्ररोड,
तेज़ रफ्तार है, जिंदगी,
लगानी पडेगी तुझे, होड,
ये दौड धूप रहेगी, सदा,
खोफ से तू, मुँह न मोड.

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लेखक परिचय :- 
नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे
शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन
प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ.
संप्रति :- भारतीय स्टेट बैंक, से सेवा निवृत्त अधिकारी
निवासी :- भोपाल म.प्र.


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