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अंतर्द्वंद

अंजना झा
फरीदाबाद हरियाणा

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बहुत दिनों बाद बचपन की सहेली रीना से मिलने के लिए मैं अति उत्साहित थी। और इसी खुशी में पूरी रात जगी रह गयी। गुज़रे दिनों की सारी बातें चलचित्र की तरह मानस पटल पर चल रही थीं। महाविद्यालय की वो शांत सी बाला जब काफी अरसे बाद फेसबुक पर दिखी तो पहचानने में बिलकुल वक्त नहीं लगा मुझे। और फिर फोन ने तो वर्षों की दूरियों को पल भर में घनिष्ठ कर दिया। जब भी बात होती रीना की खनकती आवाज उससे मिलने की इच्छा और बढ़ा देती। मिलने की व्यग्रता में अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से समय निकाल कर मैं उसके गाँव पहुँच गई।
गांव का खुले आंगन वाला घर कितना साफ और सलीके से सुसज्जित था। आखिर रहता भी क्यों न इस घर की मालकिन सुशिक्षित सौम्य महिला जो थी। रीना की सारी पड़ोसन मुझसे मिलने आ गयी थीं। ऐसा लग रहा था मैं सिर्फ रीना की सहेली नहीं उन सभी की रिश्तेदार हूँ। इस अपनापन ने भावातिरेक कर दिया मुझे।
पर एक बात जो मैं समझ नहीं पा रही थी आखिर रीना गांव में क्यों बसने आ गयी। मुम्बई जैसे शहर से अपने पति का तबादला क्यों इस कसबे में करवाया।
इस आधुनिक युग में जब लोगबाग शहर की तरफ पलायन कर रहे हैं। अपने पढाई के दिनों में तो रीना बड़े शहर में ही बसना चाहती थी। शादी के वक्त जब पता चला होने वाला पति मुम्बई में रहता है बस इसी बात से कितनी खुश हुई थी। फिर अब गाँव क्यों?
रीना ६ बजते ही उठकर कमरे में गई, मैं भी पीछे -पीछे चल दी। बिस्तर पर रीना की बेटी पडी़ थी। रीना बड़े प्यार से उसकी सारी गंदगी साफ कर उसे आलिंगन में भरकर चूमने लगी। पता नहीं वो २० साल की गुड़िया माँ के स्पर्श को भी समझ पा रही थी या नहीं । रीना मुझे देख कर बोली-गुड़िया ही मेरे जीवन की वास्तविक उर्जा है। इसकी परवरिश ने आत्मशक्ति भर दी है मुझमें। इस सांसारिक जीवन में बिना किसी अपेक्षा के कार्य करना मेरी बिटिया ने सीखा दिया। जब तक इक आस थी इसमें कुछ सुधार की मैंने सारे बड़े अस्पताल के चक्कर लगाये। पर जब सभी चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर लिये और १७ साल तक ही गुड़िया की आयु बताई तो मैं विचलित हो गयी। और तुझे तो पता है महानगर का, एकाकीपन से भरा संवेदनहीन जीवन होता है। गुड़िया में प्राकृतिक शारीरिक परिवर्तन होने लगे थे, पति के कार्यालय जाने के बाद इसकी सुरक्षा और परवरिश में मैं अकेली पड़ जाती थी। पर गांव लाने के बाद तो मेरी गुड़िया पूरे गाँव की जिम्मेदारी हो गयी है। इतना कहते-कहते रीना की आंखें भर आईं। रीना ने कुछ रूक कर कहा – सच कहुँ तो मैं अब ये सोच कर घबरा जाती हूँ कि गुड़िया के बगैर मैं कैसे रहूँगी, पर दूसरे ही क्षण वो बोल पडी़ ईश्वर इसके दुखों से इसे छुटकारा दिला दें, यही आशीष दे तू मेरी गुड़िया को। एक माँ की करूणामयी दग्धपूर्ण व्याकुलता मुझे अंदर तक विचलित कर रही थी। बहुत ही कातर स्वर उसकी आत्मा के अभेद्य दीवार से टकराकर मेरे कानों में गूंजा- मेरे बाद गुड़िया की देखभाल कौन करेगा।
अब मुझे समझ में आ गया कि अपने आप से मतलब रखने वाली रीना बिना किसी अपेक्षा के सभी की मदद के लिए क्यों आतुर हो जाती है। उसकी आंतरिक शक्ति का स्रोत मेरे आंखों के समक्ष बिस्तर पर निर्विकार पडी़ हुई थी।
नहीं, न तो प्यारी गुड़िया दिव्यांग है न मंदबुद्धि वो तो रीना के आंचल में आया वो अनमोल तोहफा है जो रीना को सांसारिक जीवन में रहकर आध्यात्मिकता का अमूल्य पाठ पढ़ा रही हर दिन- हर पल। और मैं रीना के गले लगकर सोच रही थी वाकई बिना किसी अपेक्षा के अपने कर्तव्य की पूर्ति ही तो सबसे बड़ी तपस्या है। और रीना की तरह कितनी ही मां इस तपस्या में लीन हैं। अपने ही कोखजनों को हर दिन प्रभु से उनके उम्र की दुआ करते हुए बड़ा करने की कोशिश में या फिर इस कष्टप्रद जीवन से छुटकारा दिलाकर मोक्षप्राप्ति के अंंतर्द्वद में।

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परिचय :-  नाम : अंजना झा
माता : श्रीमती फूल झा
पिता : डाक्टर बद्री नारायण झा
जन्म तिथि : ६ अगस्त १९६९
जन्म स्थान : पटना
अंजना झा मूलतः बिहार की निवासी हैं। आपने मनोविज्ञान में एम.ए. किया है। पूर्व में आर्मी पब्लिक स्कूल में शिक्षिका रही हैं। आप कुछ समय आनलाइन पत्रिका साहित्य लाइव में संपादिका पद पर भी रह चुकी हैं। आपकी रुचि लघुकथा और काव्य लेखन में है। आपकी रचनाएँ हिंदी रक्षक मंच
(hindirakshak.com) व अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं।


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