डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)
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किताबों से आती ख़ुशबू वही….
पन्नों को रखा था यूँ मोड़कर।
कुछ गुलाबों की कलियाँ अधूरी नज़्म,
उन्हें देखिये तुम फ़िर जोड़कर।
चाँदनी चाँद की न फ़ीकी पड़े,
चमक मोतियों की सलामत रहे।
एहसास केवल रहे प्यार का,
दिल में न कोई अदाबत रहे।
जिस मोड़ पर हम मिले थे कभी,
याद करके सफ़र सुहाना हुआ।
आया ताज़ी हवा का झोंका कोई,
ऐसा लगा दिल दिवाना हुआ।
आओ चमन में चलें टहलने ….
फूल खिलकर गुलाबी गुलाबी हुये।
बोलिये न किंचित इक़ शब्द भी,
मन के बादल घुमड़ कर शराबी हुये।
परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।
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