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सदा ऐसे ही छला

वीणा वैष्णव
कांकरोली

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सरल व्यक्ति को, सदा ऐसे ही छला जाता है।
कर उसका अपमान, शर्मिंदा किया जाता है।।

चिकनी चुपड़ी बातों से, वो अच्छा बन जाता है।
लेकिन हकीकत को, वह नहीं छुपा पाता है।।

गैर नजर नहीं, प्रभु नजर वह गिर जाता है।
अपनी बर्बादी द्वार, वो स्वयं खोल जाता है।।

शतरंज खिलाड़ी बन, होशियारी दिखाता है।
प्रभु नजर से वह, कभी नहीं बच पाता है।।

इतिहास गवाह, छलिया सदा ही दुख पाता है।
रावण कंस कौरव, याद नहीं कोई रखता है।।

अति सर्वत्र वर्जित, उसको ही वह दोहराता है।
उपवास पात्र, सबके समक्ष वह ऐसे बनता है।।

अपने मुंह मियां मिट्ठू, जो गलती से बनता है।
अति होने पर, खुद अपने हाथ मुंह ढकता है।।

गुणी बन बकवाद, लंबी तान वो छेड़ता है।
अपना मान सम्मान, ऐसे स्वयं खो देता है।।

श्रेय उसे ही मिलता है, श्रेष्ठ कार्य जो करता है।
सरल व्यक्ति सदा, गुणों से ही पूजा जाता है।।

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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।


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