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बचपन क्या था

संजय जैन
मुंबई

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याद आ रहे है हमे,
वो बचपन के दिन।
जिसमे न कोई चिंता,
और न ही कोई गम।
जब जैसा जहां मिला,
खा पीर हो गए मस्त।
न कोई जाति का झंझट,
न कोई ऊंच नीच का भेद।
सब से मिलकर रहते थे,
जैसे अपनो के बीच।
पर जैसे-जैसे बड़े होते गये,
वो सब हमे सीखा दिया।
बचपन में अनभिज्ञ थे जिससे,
स्वार्थ के लिए जहर पिला दिया।
और मानो हमे बचपन का,
सारा मतलब ही भूला दिया।
तभी तो लोग कहते है,
लौटकर बचपन आ नही सकता।
और बचपन की यादों को,
भूलाया जा नही सकता।।

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लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ – साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।


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