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पहली मुहब्बत

रुचिता नीमा
इंदौर म.प्र.

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वो गजब सी कशिश
वो गजब सा एहसास,
हा तुम ही तो थे

वो तेरा मुस्कुराना
जैसे कई कलियों का खिल जाना,
कई भवरों का एक साथ गुनगुनाना,
जैसे बादलों में इंद्रधनुष का निकल जाना,
और सतरंगी सपनों का सच हो जाना,
ख्वाब नही था मेरा,
हकीकत थी तुम्हारा मिल जाना,
जब में, में न रही, बस तुम ही तो थे
और सब तुम ही थे और कुछ न था
वो गजब सा एहसास
वो साँसों की झनकार
सब तुम ही थे
बस तुम ही थे

वो तेरा मिलना
जैसे मिल गया कोई अनमोल खजाना
वो तेरा होले से छू जाना
या जैसे आ गई समंदर में नई तरंग
वो पतझड़ में बहारों का आ जाना
वो दिल मे खुशी का सैलाब बनकर
हा वो तुम ही थे, मेरी जान वो तुम ही थे

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लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।


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