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महत्वाकांक्षा

अंजना झा
फरीदाबाद हरियाणा

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अपने आंसू पोछते हुए शालू समझ नही पा रही थी इस परिस्थिति के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाये। शिक्षित परिवार की शालू सर्व गुण संपन्न थी। मायके और ससुराल दोनों ही परिवार में प्रिय थी। इकलौता बेटा तरूण की परवरिश भी ऐसे किया कि लोग बाग तारीफ करते न थकते थे। संस्कार और उच्च सामाजिक मापदंड दोनों ही कड़ियों का पालन हो रहा था बेटे के परवरिश में। फिर कहां चूक रह गई ।
संदीप के बार बार समझाने पर भी शालू के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे कल रात जब बेटे का फोन आया था – “माँ आपको पोता हुआ है और साथ में हमें यहाँ की नागरिकता भी मिल गयी। “आपकी मेहनत ही रंग लायी है माँ जो आज मैं ये सब हासिल कर पाया हूँ।
शालू के दिल दिमाग में इक ही बात घुमड़ रही थी – ये सपना तो कभी न था मेरा कि बेटा अपनी मिट्टी छोड़ कर विदेशी बन जाये। उसने तो विदेश में शिक्षा दिलवाने का कदम इसलिए उठाया था ताकि गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा लेकर जब वापस आये तो अपने देश में एक सम्मानित जीवन जीये।
परायी मिट्टी का तिलक माथे पर लगा कर अपने बेटे का खुशी से चहकना शालू के दिये संस्कार से कहीं भी मेल नहीं खा रहे थे। और बस यही विचार बार बार अंतह तक हिलकोरे मारकर आंसुओं का सैलाब बन आंखों से निरंतर बहता जा रहा था। और वह समझ नहीं पा रही थी बेटे की महत्वाकांक्षा के लिए आखिर किसे दोष दे।
या फिर स्वयं भी मंदिर में लड्डू चढ़ा कर चहकती हुई – पोता होने और बेटे के प्रवासी बनने की खुशखबरी दे अपने संस्कार पूर्ण शालीनता से।

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परिचय :-  नाम : अंजना झा
माता : श्रीमती फूल झा
पिता : डाक्टर बद्री नारायण झा
जन्म तिथि : ६ अगस्त १९६९
जन्म स्थान : पटना
अंजना झा मूलतः बिहार की निवासी हैं। आपने मनोविज्ञान में एम.ए. किया है। पूर्व में आर्मी पब्लिक स्कूल में शिक्षिका रही हैं। आप कुछ समय आनलाइन पत्रिका साहित्य लाइव में संपादिका पद पर भी रह चुकी हैं। आपकी रुचि लघुकथा और काव्य लेखन में है। आपकी रचनाएँ हिंदी रक्षक मंच
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