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अस्तित्व खोकर

वीणा वैष्णव
कांकरोली

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अस्तित्व खोकर, गुमनाम जीवन जी रहे हैं।
अनमोल मिला जीवन, अंधेरे में ढो रहे हैं।।

कर गुनाह सब यहाँ, गुमनाम बन जी रहे हैं।
जहर घोल जीवन में, अब कर्मों पर रो रहे हैं।।

रिश्तो को बिखेर, हर शख्स अधूरे लग रहे हैं।
एकांकी जीवन जीने, मजबूर अब हो रहे हैं।।

बरसों लगे मुकाम पाने में, पल में गिर रहे हैं।
पहचान छुपा सबसे, ऐसे जीवन जी रहे हैं।।

जैसा बोया वैसा ही, अपनों संग काट रहे हैं।
गलत कार्य गलत नतीजा, देखो वो पा रहे हैं।।

राह मालूम नहीं, गुमनाम राहों पर जा रहे हैं।
फस रहे दलदल, क्यों रोका नहीं कह रहे हैं।।

दूध जले छाछ भी, फूंक-फूंक अब पी रहे हैं।
शेष जीवन उजाले में, इस तरह जी रहे हैं।।

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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।


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