Monday, November 25राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

आग जो मेरे अंदर है

चेतना ठाकुर
चंपारण (बिहार)

********************

आग जो मेरे अंदर है
आंखों से बहती निर्झर है।
आंसू ना होते तो, जल गए होते हम
शायद मर गए होते हम
कसक होने पर फूट-फूट के रोते हैं हम
आंसू ना होते तो, घुट घुट के मर
गए होते हम
आंसू वो है –
जो अंदर की आग बुझाते है।
दिल बेचैन हो तो समझाते हैं।
सीने की आग पिघलाते है।
जीने का सबब बतलाते है।
उलझन को छम-छम बरस
सुलझाते हैं आंसू
अकेले में भी साथ निभाते हैं।
कभी अपने से लगते हैं आंसू
तो कभी छलनी से
लगते हैं आसूँ
आग जो मेरे अंदर है ।
आंखों से बहती निर्झर है।

.

लेखक परिचय :-  नाम – चेतना ठाकुर
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻hindi rakshak manch 👈🏻 हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *