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आग जो मेरे अंदर है

चेतना ठाकुर
चंपारण (बिहार)

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आग जो मेरे अंदर है
आंखों से बहती निर्झर है।
आंसू ना होते तो, जल गए होते हम
शायद मर गए होते हम
कसक होने पर फूट-फूट के रोते हैं हम
आंसू ना होते तो, घुट घुट के मर
गए होते हम
आंसू वो है –
जो अंदर की आग बुझाते है।
दिल बेचैन हो तो समझाते हैं।
सीने की आग पिघलाते है।
जीने का सबब बतलाते है।
उलझन को छम-छम बरस
सुलझाते हैं आंसू
अकेले में भी साथ निभाते हैं।
कभी अपने से लगते हैं आंसू
तो कभी छलनी से
लगते हैं आसूँ
आग जो मेरे अंदर है ।
आंखों से बहती निर्झर है।

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लेखक परिचय :-  नाम – चेतना ठाकुर
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)


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