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कभी कभी

रुचिता नीमा
इंदौर म.प्र.

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कभी कभी कुछ पल ही तो माँगती हूँ,
कभी कभी थोड़ी सी हिम्मत,
थोड़ा सा प्यार माँगती हूँ…
आ जाये इस दिलको करार
वो साथ माँगती हूँ

मैंने कभी कहा तुमसे,
कि इससे ज्यादा की कुछ चाह है
न धन की, न गहनों की
कही कोई अभिलाषा है…

सिर्फ इस व्यस्त जीवन से
कुछ सुकून के पल ही तो माँगती हूँ
आ जाये जिससे दिल मे सुकून
तुम्हारे साथ वो वक़्त माँगती हूँ

लेकिन तुम इतना भी नही कर पाते…
हर चीज का लगा लेते हो मोल
और जो है मेरे लिये अनमोल
उसी को तुम कर देते हो गोल…

समझते क्यो नही तुम
इन जज्बातों को
इन एहसासों को
मेरी अनकही बातों को

जिस दिन तुम, मुझे समझ
स्नेह से गले लगाओगे …
सच कहती हूँ जितना दोगे
उससे, कहीं अधिक तुम पाओगे…

समझने लगो तुम अब मुझकों
बस इतनी सी ही है चाहत मेरी
क्यूँ ले रहे,
कठिन परीक्षा, मेरे सब्र की…
हर जनम दासी बन जाऊं
बस पूरी हो जाए, चाहत अधूरी..
क्यों बना रखी है तुमने
अपने मन से मन की दुरी…

माना दुनिया में
काम बहुत है…
दिल के जज्बात भी हैं जरूरी
तुम मेरे चन्द्रमा, धरा मै तेरी
रहती सदा मै तेरी धुरी…

पिघलेगा
उनका प्रेम भी इक दिन
और होगी मेरी चाहत भी पूरी ….
होगी मेरी चाहत भी पूरी ….
होगी मेरी चाहत भी पूरी ….

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लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।


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