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हे! औरत

अशोक बाबू माहौर
कदमन का पुरा मुरैना (म.प्र.)

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हे ! औरत तेरे माथे पर
पसीना क्यों?
क्यों साँसें लम्बी लम्बी?
भुजाएं थकी थकी
जुबान कुछ कहना चाहती
पर कह नहीं पाती।
मुखड़ा उखड़ा क्यों?
क्या तुम हारी हो?
जमाने से
या घर परिवार से,
रोती रहती हो सुबह शाम
पी जाती हो दुखों को
नासमझ कर।
मुझे अहसास है
अनुमान है
तुम कठिन परिश्रम से नहीं
बल्कि अपनों के ताने सुनकर
ढ़ह गयी हो
ढ़ेर सारी परेशानियों में चल रही हो
फफकती रो रही हो
पर कह नहीं रही हो
अंदर मंथन कर
टूटकर जुड़ रही हो।

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लेखक परिचय :-  
नाम – अशोक बाबू माहौर
ग्राम – कदमन का पुरा, जिला – मुरैना(म. प्र.)
प्रकाशन – हिंदी रक्षक डॉट कॉम सहित देश विदेश की विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान – इ-पत्रिका अनहदकृति की तरफ से विशेष मान्यता सम्मान २०१४-१५ से अंलकृति।
नवांकुर साहित्य सम्मान
साहित्य भूषण सम्मान
मातृत्व ममता सम्मान आदि।
प्रकाशित साझा पुस्तक :-
(१) नये पल्लव ३
(२) काव्यांकुर ६
(३) अनकहे एहसास
(४) नये पल्लव ६
(५) काव्य संगम
(६) तिरंगा
मौलिकता – मैं अशोक बाबू माहौर यह घोषणा करता हूँ कविता ”हे औरत” स्वरचित रचना है जिसे मैं हिंदीरक्षक डॉट कॉम में प्रकाशित करने के लिए प्रेषित कर रहा हूँ।

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