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आयु अपनी शेष हो गई

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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आयु अपनी शेष हो गई पीड़ा की पहनाई में
अब भी सपने सुलग रहे देखे जो तरुणाई में

काजल सी काली अंधियारी यह रात ढलेगी
संभव आशाएं मुस्काए पूरब की अरुणाई में

चैता की वो विरह गीतिका कब तक सिसके
कभी संदेशा आने का मिल जाए पुरवाई में

इन सांसों की उलझन में क्यों जीवन उलझे
हरियाए उपवन भी, कलियों की अंगड़ाई में

क्यों ना पाए समझ, झुकी दृष्टि की लाचारी
क्यों नहीं डूबकर देखा चुप्पी की गहराई में

सहमे-सहमे गलियारे हैं दरकी-दरकी दीवारें
पहले कैसी चहलपहल होती थी अंगनाई में

जब स्वयं को भूल गए हम, अपने ही भीतर
कितना बेगानापन लगे अपनी ही परछाई में

मन की सारी व्यथा लिखी, इन गीतों छंदों में
पूरे सफर की कथा लिखी पांव की बिवाई में

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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