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स्त्री कमजोर नहीं

डॉ. मनीषा ठाकरे
नागपुर (महाराष्ट्र)
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स्त्री कमजोर नहीं होती,
बस संवेदनशील होती है,
दुनिया की ठोकरें खाकर भी,
मुस्कान में शामिल होती है।

जो आँसू तुम कमजोरी
समझ बैठे हो,
वो उसकी सहनशक्ति
की पहचान होती है।
हर दर्द को सहेज कर भी,
वो किसी का संबल बनती है,
मुस्कान होती है।

वो अगर खुलकर
बोले तुमसे,
तो यह उसकी
सरलता है, साहस है,
हर किसी के सामने
दिल खोलना,
हर किसी की
आदत नहीं होती है।

तुम समझ बैठे शायद,
उसके शब्दों में
कोई इशारा होगा,
पर वो तो बस
मन की उलझनें,
किसी अपने से
साझा कर रही होगी।

उसकी चुप्पी में
तूफान छुपे होते हैं,
उसकी बातें भी
कभी दवा होती हैं।
वो रोती है तो मत
समझो कमज़ोर है,
उसके आँसू भी
आग के जैसे होते है।

वो लड़ती है अपने
भीतर के डर से हर रोज़,
संघर्षों की आग में
तपकर कुंदन होती है।
उसके विश्वास की
क़ीमत मत आंकना,
वो भरोसे से जीवन
सजाती है, सपने बोती है।

अगर किसी मोड़ पर
वो तुमसे कुछ कह जाए,
तो सोचो-उसने तुम्हें
कितना अपना बनाया है।
नाम मत दो उसके
रिश्ते को बेवजह,
तुम खुद उसके विश्वास के
कितने क़ाबिल हो, ये सोचो।

स्त्री फूल है, पर कांटे
भी साथ लाती है,
जब भी समय आता है,
आग बनकर बरस जाती है।
मत समझो उसे कमज़ोर कभी,
वो तो बस संवेदनशील होती है।

परिचय :- डॉ. मनीषा ठाकरे
निवासी : नागपुर (महाराष्ट्र)
सम्प्रति : संस्थापक अध्यक्ष – ग्लोबल इंटरनेशनल फाउंडेशन नागपुर (महाराष्ट्र)
घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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