Monday, March 31राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

थू थू की थाह की थीसिस

डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
********************

आज एक थीसिस, जो हमारी डिग्रियों की धूल सने कागज़ों के बीच में हमें मिल गई, उसके कुछ पन्ने पलटकर आपको सुनाते हैं। थीसिस का शीर्षक है- “थू थू की थाह”

थू थू करना एक कला है, बिलकुल जुगाड़ कला की तरह शुद्ध भारतीय कला। मैं तो कहता हूँ, इस कला का कॉपीराइट लेना चाहिए! विदेशी लोग हमारी कला को हथियाने में लगे हैं- योग ले गए, कामसूत्र ले गए, हरे कृष्णा-हरे राम ले गए- हमारी हिंदुस्तानी कला को चमकीले कवर में लपेटकर वापस हमें ही बेच रहे हैं। ये सब प्रपंच अंग्रेज़ों के ज़माने से चला आ रहा है। उस समय भी तो कच्चा माल लेकर, पका-पकाया माल देते थे। वैसे भी हम भारतीयों को कच्चा खाया नहीं जाता, हमें तो पका-पकाया चाहिए थू थू एक एब्सट्रैक्ट आर्ट है। कला के क्षेत्र में ऐसी कला हर किसी को समझ में नहीं आती, पारखी नज़र चाहिए। जिन्हें समझ में नहीं आ रहा, वे फालतू का ड्रामा कर रहे हैं, थू थू बंद कराने पर तुले हैं। देखो इन थू थू करती मनु की संतानों को, जो सनातन काल से इस थू थू करने की विरासत को जीवित रखे हुए हैं। लोग जर्दा, तंबाकू, गुटखा से मिश्रित रंगभरी पिचकारी से देश की समस्त दीवारों को अपना कैनवास समझते हुए ग़ज़ब की चित्रकारी कर रहे हैं। कच्ची-पक्की, उधड़ी, साबुत, सरकारी या गैर-सरकारी कोई भी दीवार उनके लिए दीवार नहीं एक केनवास है। कला के ये अद्वितीय प्रदर्शनकर्ता अपनी प्रतिभा से देश के दर्शनीय स्थलों को और भी दर्शनीय बना रहे हैं, और अदर्शनीय स्थानों को भी दर्शनीय। सरकार करोड़ों रुपये रंग-रोगन में खर्च करती है, लेकिन ये कलाकार सरकार का पैसा बचाने के लिए अपने फेफड़ों से रंगोली फेंक रहे हैं। कई बार सरकार इस खर्चे से बचने के लिए दीवारों पर लिखवा भी देती है- “यहाँ थूकना मना है।” एक सांकेतिक भाषा में आव्हान जो ये कला के पुजारी समझ जाते हैं और दीवारों को अपनी कला की सतरंगी धार से जीवंत कर देते हैं।
अब ज़रा देखिए राजनीति के गलियारों में- वहाँ तो थूकने वालों की भरमार है। जो सबसे बड़ा थूकता है, वही सबसे बड़ा पद पाता है। टीवी न्यूज़ की बहसें मेरा मतलब थू थू कम्पटीशन भी इसी लिए कराये जाते हैं ताकि पता चल सके कि किस ओर ज़्यादा ज़ोर से थूका गया। लोकतंत्र की जान है थू थू! खिलाड़ी, राजनेता, पत्रकार, कॉरपोरेट्स- बड़ी मछली से लेकर छोटी मछली तक- सबको बिकना पड़ता है, ताकि जनता की थू थू बनी रहे। नालियाँ पहले से ही भरी होंगी, तो वहाँ कौन थूकेगा? थू थू तब दिखती है जब साफ-सुथरी सड़कें, चमचमाती दीवारें और नई बनी सरकारी इमारतें हों। वरना यह एब्सट्रैक्ट आर्ट, डिग्रियों की तरह, ओझल हो जाएगी। योग्यता की तरह किसी की नज़र नहीं आएगी।
थू थू तो राष्ट्रीय खेल घोषित होनी चाहिए! वैसे एक बात बताऊँ? सिर्फ थूकने वाले ही नहीं, बल्कि थू थू के लिए अपने आपको कैनवास की तरह बिछाने वाले भी ज़रूरी हैं! राजनीति में तो जब तक कोई जनता की थू थू को अपने ऊपर धारण न कर ले, तब तक वह असली नेता नहीं बन सकता। असली नेता वही, जो फेंके गए थूक से भी अपनी राजनीति की बहुमूल्य पिकासो जैसी तस्वीर बना ले- बिल्कुल वैसे ही, जैसे लानत और जिल्लत की फेंकी गई ईंटों से लोग अपने स्वार्थ की इमारत खड़ी कर लेते हैं।
अब संसद को देखिए-
वहाँ तो विशेष “थूक काल” चलता है, पक्ष और विपक्ष की थूकम फजीती के विशेष सत्र। कभी-कभी थू थू स्पीकर तक नहीं पहुँचती, तो उसे कुर्सियों और माइक्रोफोन के ज़रिए पहुँचाया जाता है। नए संसद में कुर्सियाँ ज़मीन में फिक्स कर दी हैं, इसलिए अब थू थू की स्पीड थोड़ी कम हो गई है! रिश्ते-नाते भी इस परंपरा को निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। फूफा किस्म के, मौसा किस्म के रिश्ते तो बने ही इसीलिए हैं- शादी, ब्याह, मरन, जन्म संस्कार- हर जगह अपनी थू थू से चार चाँद लगाने के लिए! जनता को थू थू करने का मौका ५ साल में सिर्फ एक बार मिलता है। लेकिन जनता फिर उन्हीं नेताओं को चुनकर भेज देती है, ताकि अगले ५ साल तक वे थू थू करते रहें। देश तो थू थू में इतना पारंगत हो चुका है कि लोग ड्रॉइंग रूम में बैठकर ही सरकारों पर थूककर समस्याएँ हल कर लेते हैं।
बजट की घोषणा होते ही थू थू शुरू- बेडरूम से लेकर टीवी स्टूडियो, संसद भवन से लेकर सोशल मीडिया तक- थू थू ही थू थू! कोरोना काल में भी हमने चीन को थू थू करके डरा दिया। अब सरकार समझ नहीं पाई कि लोग चीनी सामान पर थू थू कर रहे थे, न कि चीन की सेना पर। जोश में आकर सड़कों पर निकल आए थू थू करने और पुलिस बाले इनके योगदान को नजरानादक करके इन पर डंडे बरसाने लगे..यह सिला देशभक्ति का । अरे भाई सड़कें बनी है तो थूकने के लिए, थूक- थूक कर बेघर कर दिया कोरोना को … मेरा मतलब सड़क पर ला कर खड़ा कर दिया.., उसका क्रेडिट नहीं दिया।

मैं तो कहता हूँ, ऐसे थूकने वालों को पुलिस में भर्ती कर लेना चाहिए- पाकिस्तान और चीन को तो ये थू थू करके ही निपटा देंगे! अब समस्या यह है कि मृत्युलोक की सारी दीवारें रंग चुकी हैं। अब लोग नई जगहें ढूँढ रहे हैं- कोई एवरेस्ट पर जाकर थू थू कर रहा है तो कोई चंद्रमा पर।
अब तो भारत के फुटप्रिंट के साथ-साथ थूक प्रिंट भी वहाँ दर्ज होने चाहिए, तभी असली चंद्रयान सफल माना जाएगा! थू थू की यह थीसिस समाप्त नहीं हुई है, बल्कि यह तो अनंत काल तक चलने वाली परंपरा है। आप भी अपनी थू थू में योगदान दें, क्योंकि जब तक यह परंपरा जीवित है, लोकतंत्र भी जीवित है!

परिचय :-  डॉ. मुकेश ‘असीमित’
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही प्रकाशित  पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से), काव्य कुम्भ (साझा संकलन) नीलम पब्लिकेशन, काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन ) लायंस पब्लिकेशन।
प्रकाशनाधीन : व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन )  किताबगंज   प्रकाशन,  गिरने में क्या हर्ज है -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह) भावना प्रकाशन। देश विदेश के जाने माने दैनिकी, साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित 
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *