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अहसानफरामोश

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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हक अधिकार मिला?
हां मिला।
किसकी बदौलत?
पता नहीं।
आरक्षण से नौकरी मिला?
हां मिला।
किसकी बदौलत?
पता नहीं।
और इस तरह से
महामानवों को
लोग भुला देते हैं,
उनके योगदानों
को भुलाकर
समाज को पे बैक
करने के जगह
पत्थरों पर
रकम लुटा देते हैं,
और घूमते रहते हैं
इस स्थान से उस स्थान,
इस पहाड़ से उस पहाड़,
देखते ही नहीं
न गर्मी न बरसात न जाडा,
वह महसूस करने लगता है कि
नौकरी मैंने मेहनत से पाया,
जिसके लिए भरपूर समय लुटाया,
वो भूल जाता है उनका होना
न ऊपर वाले को पसंद है
और न ही नीचे वाले को,
पग पग पीना पड़ता है
विष के प्याले को,
बंदा पद के नशे में मदहोश है,
तभी तो समाज के प्रति
अहसानफरामोश है।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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