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बहुत खुश है हम

प्रीतम कुमार साहू
लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़)
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पास आकर बैठो तो बताएंगे अपना गम
दूर से पूछोगे तो कहेंगे बहुत खुश है हम..!!

चार पैसे कमाने गांव से शहर आ गए,
अपने ही घर से मानो बेघर हो गए हम..!!

घर की तलाश में घर छोड़ आए है हम,
गांव गली घर से रिश्ता तोड़ आए हम..!!

लोगों की नजरों में अब अनजान बन गए
अपने ही घर में हम मेहमान बन गए..!!

चार पैसे कमाने दर-दर भटकते रहे हम
कभी ख़ुशी कभी गम का घूंट पीते रहे हम..!!

शहरों तक नहीं आती  मिट्टी की खुशबू,
गाँव की मिट्टी से बहुत दूर आ गए हम..!!

न गाँव के रहे अब ना शहर के रहे हम
अपने बिना शहरों में भटकते रह गए हम..!!

होंठों पे मुस्कान पर अब आँखे है क्यों नम
पास आकर बैठो तो बताएंगे अपना गम..!!

परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक)
निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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