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द्रौपदी

किरण पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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पांच पति की द्रौपदी,
छली गई वह नार,
पासे पर फेंकी गई
वह अबला हर बार,
क्या पासा क्या दावा है स्त्री?
उसका कोई अस्तित्व नहीं,
जिस और उसे हांके कोई,
गाय भैंस वह ढोर नहीं।
एक संबंध के कारण झुकती है,
आज अबला नहीं सबला नारी,
कभी मायके कभी ससुराल में देखो,
पासा बन बैठी है नारी।
अपना व्यक्तित्व अपना है अहम,
छल-कपट के कारण छली नारी,
मन ही मन में वह विचार करें,
क्या मेरा अस्तित्व नहीं कोई?
क्यों दाव पर उसे लगाते हो,
क्यों पासा उसे बनाते हो,
अपनी इज्जत आबरू के कारण,
तुम दुखी उसे कर जाते हो।
एक आंख में आंसू उसके,
एक आंख है नम है रही,
औरों की राजनीति के कारण,
अपनी इज्जत दाँव पर की।
तुम समझो उसकी भावना को,
नहीं किसी के पक्ष में वो,
सबका साथ सबका है प्यार,
बस यही उसी की झोली में है।
मान अपमान सब सहन करें,
अपने परिवार के खातिर वो,
रो करके आंसू पोछ लेवे,
उसी का नाम तो नारी (स्त्री) है।

परिचय : किरण पोरवाल
पति : विजय पोरवाल
निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स
व्यवसाय : बिजनेस वूमेन
विशिष्ट उपलब्धियां :
१. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित
२. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित
३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२४” से सम्मानित
४. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना
रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंडला आर्ट एवं संगीत
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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