
डॉ. पवन मकवाना (हिंदी रक्षक)
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
********************
मेरे पास थी
इक टोकरी
जो मैं देना
चाहता था तुम्हें
बसंत पंचमी
प्रेम पर्व पर
कुछ गुलाब
सफ़ेद रंग के
जो प्रतीक है
शान्ति/अमन/सुलह
और भाईचारे का
मैं देना चाहता था
तुम्हें एक टोकरी …
देना चाहता था तुम्हें
क्यूंकि तुम हो
मुझसे नाराज
हाँ … मुझे है
ये आभास …
कुछ गुलाब पीले
जो प्रतीक है
विशवास का/दोस्ती का
जिसकी और बढ़ाया था
तुम्हीं ने पहला कदम
भेजकर संदेश अपना
दिया था तुमने
एक प्यारा सा दोस्त
एक नया सपना
हाँ रख लोगे
पीले गुलाब तुम
अगर कभी समझा होगा
तुमने हमें जो दोस्त अपना
हाँ मैं देना चाहता था
तुम्हें एक टोकरी …
कुछ गुलाब लाल भी हैं
जो प्रतीक हैं
प्रेम/पूजा/प्यार के इबादत के
देना चाहता था मैं तुम्हें
क्यूंकि तुम्हीं चाहते थे
कि कोई चाहे तुम्हें …
दोस्त कि तरह/ध्यान रखे
साथी कि तरह/साथ रखे
पिता कि तरह/दुलार रखे
भाई कि तरह/धाक रखे
हाँ मैं देना चाहता था
तुम्हें लाल गुलाब
क्यूंकि
करता हूँ मैं प्यार तुम्हें
हाँ चाहता हूँ तुम्हें मैं
क्यूंकि तुम मुस्कराते हो सदा
मुश्किलों में भी
एक साहस का दम्भ लेकर
जज्बा है तुममे
कुछ कर गुजरने का
हाँ मेरे पास थी एक टोकरी …
चाहता हूँ कि बनूँ मैं
सच्चा दोस्त तुम्हारा
बनूँ सच्चा साथी
बनूँ भाई कि तरह
और पिता कि भांति
पर तुमने
मुझे समझा क्या
पता नहीं
इसमें तुम्हारी भी
तो खता नहीं
हाँ मेरे पास थी एक टोकरी …
मैं देना चाहता था
तुम्हें यह टोकरी
पर जब
देखा तुम्हारे हाथों में
झांका जो तुम्हारे आँखों में
कि तुम भी एक
फूल लिए खड़े हो “काला”
जो नज़र ना आकर भी
सिर्फ मुझे नज़र आ रहा है
“साला”
जो प्रतीक है
गुस्से का/नफरत का
यह जो फूल है
मेरे लिए
क़बूल है मुझे
मुझे क्यों दे रहे हो
यह फूल तुम
यही पता नहीं है तुम्हें
हाँ मेरे पास थी एक टोकरी …
यह तो है मेरा नसीब
दूर हुआ है मुझसे वो
जिसके भी
जाना चाहा है करीब
क्या माता क्या पिता
सभी से
नफरतों का
इनाम मिला है मुझे
तुमने भी दूर कर दिया
तो क्यों दूँ
इल्जाम तुझे
हाँ मेरे पास थी एक टोकरी …
मुझे मिला वही
जो किस्मत में है मेरे
अब ना आऊंगा
जीवन में तेरे
फिर भी मुझे
इन्तजार रहेगा
दे दो मुझे वो टोकरी
जो संभाल कर रखी है
कोई आकर ये कहेगा
पर ये “समीर” ना
किसी भावना में बहेगा
किसी कि अमानत है
ये टोकरी/नहीं दूंगा
बस ये कहेगा …
बस ये कहेगा …
बस ये कहेगा …
हाँ मेरे पास थी एक टोकरी
जो मैं देना चाहता था तुम्हें …
परिचय : डॉ. पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
सम्प्रति : स्वतंत्र पत्रकार व व्यावसाइक छायाचित्रकार
संस्थापक : राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच
सम्पादक : hindirakshak.Com हिन्दीरक्षकडॉटकॉम
सम्पादक : divyotthan.Com (DNN)
सचिव : दिव्योत्थान एजुकेशन एन्ड वेलफेयर सोसाइटी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 hindi rakshak manch 👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻
बहुत खूब। अत्यंत सुंदर तरीके से वासंती पर्व को विभिन्न भावों में गढ़डाला। बहुत ही सुन्दर रचना 👌