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आदमी वो ही हैं

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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आदमी वो ही हैं
आदमी वो ही है
जिसमें धैर्य तो हो
मानव धर्म भी हो
आदमी वो है
करे जो सार्थक
सब कर्म भी हो।

आदमी वो है
रहम का वास
जिसके दिल में हो
आदमी वो है
जो सहज हर
मुश्किल में हो।

सच बताओ?
लग रहा क्या
आदमी-सा आदमी
आदमी के भेष में क्यूँ ?
जानवर-सा आदमी।
कब घुसा इस
आदमी के जिस्म में
ये जानवर?
आदमी हो तो तुम्हें
इस जानवर
की शर्म हो।

आदमी का वहम हो और
जानवर-पन ही रहे
ये ईमाँदारी कहाँ? हम
आदमी खुद को कहें।
आदमी हैं जिंदगी में
आदमी बनकर रहें
आदमी हो तो समझ़ में
तत्व का कुछ मर्म हो।

आदमी गर ठान ले तो
स्वर्ग सी जीवन धरा हो
शुभ हुआ है आज तक भी
आदमी जब शुभ करा हो।

आदमी हो आदमी से
जुड़ गये गर प्रेम से
भाव जो गहरा हुआ तो
हर हृदय में यह भरा हो।

आदमी वो
जो ये जाने जन्म
है तो मौत होगी
आदमी वो
जो समझे कर्मगति
फलकर रहेगी।

आदमी को चाहिए
वो आदमी जैसा दिखे
जिंदगी में जिंदगी-भर
जगमगाती ज्योत हो।

आदमी में आदमी-सा
आदमी तो चाहिए।
आदमी भी सब्ज गुलशन-सा
खिला-सा चाहिए।

जिंदगी जब तक है प्यारे
मौज़ का दामन पकड़ ले
हँसता-गाता-नाचता -सा
लाजमी हर आदमी हो।

मौज़ कर ले मौज़ भर ले
जिंदगी है सब यहाँ है
सोच ले क्या चाहता है
खोज़ ले वो सब यहाँ है।

आदमी क्या व? जो है हारा
हसरतों से ही खुदी की
आदमी क्या वो जो खुद को
जान न पाया खुदी ही।

जिसकी आँखें
हों हक़ीक़त से
हमेशा मुँद मुँदी-सी
आफतें वो जिंदगी भर
न्यौता फिरता रहा हो।

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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