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आया बसंत

मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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धरा के द्वार
बजाता आया बसंत
कोयल कुकी,
कुन्ज-कुन्ज में
बौराए हैं आमृवक्ष
रविकिरण की
कुनकुनी धूप में।
बसन्त बयार बह
रही पसर रही, गंध।
हरित पर्णों की छाया में
तितली गाती, मंडराती
भौंरे गुंजन करतें पुष्पों पर
पर्ण उन्हें झुलाते हैं
वृक्ष वल्लरी
मदमाती पवन संग
पुष्प वर्षा कर
बसंत का
स्वागत करती।
स्वागत में बसंत के
पथ पर पड़े
पत्ते पतझड़ के
पवन झोंकों
संग पथ संवारते।
तड़ाग की स्थिर
जल राशि में
रवि प्रतिबिम्ब अपना
स्वर्णिम प्रकाश फैलाकर
धरा को स्वर्णिम
आभास देता।
झरना कलकल,
नंदियों का कलकल स्वर,
उपवन को आन्दोलित करता
उपवन, उपवन बाग बग़ीचे
झूम रहें हैं फल, फूलों से
आथा उनका बसंत प्यारा
आज उनके आंगन में।।

परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३” से सम्मानित व वर्तमान में राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर एवं लेखिका संघ से जुड़ी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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