प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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सँग विवेक पूजन-वंदन हो,
इसी समझ में रहना।
आस्था रखो अवश्य बंधुवर,
अंधराह मत गहना।
ईश्वर को देखो श्रद्धा-भक्ति,
नहीं रूढ़ियाँ मानो।
विश्वासों में ताप असीमित,
पर धोखा पहचानो।।
ढोंगों-पाखंडों से बचना,
समझ-बूझ में बहना।
आस्था रखो अवश्य बंधुवर,
अंधराह मत गहना।
जीवन को रक्षित तुम करना,
नित ही जान बचाना।
नहीं प्राण संकट में डालो,
यद्यपि धर्म निभाना।।
सदराहों पर चलना हरदम,
यही धर्म का कहना।
आस्था रखो अवश्य बंधुवर,
अंधराह मत गहना।
मन को पावन रखकर जीना,
यही आस्था कहती।
तजो पाप, सच्चाई वर लो,
दुनिया जगमग रहती।।
ईश्वर माने करुणा-परहित,
कर्मकांड सब ढहना।
आस्था रखो अवश्य बंधुवर,
अंधराह मत गहना।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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