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हम सभी है मौज़ में

डॉ. रमेशचंद्र मालवीय
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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आज हम सभी हैं मौज़ में
क्योंकर जाएं हम फ़ौज़ में।
सबको अपने-अपने सुख की चाह है
सबकी अपनी मंज़िल, अपनी राह है
देश पर मर मिटने वाले तो कोई और थे
आज किसको अपने देश की परवाह है
इंसान स्वयं अपनी खोज़ में
आज हम सभी हैं मौज़ में।
इस समय जो उठ रही है दूर आंधी
न किसी ने रोकने की है पाल बांधी
सभी अपने आपको समझ बैठे खुद़ा
अब न कोई आएगा फिर से वो गांधी
मानवता रो रही है रोज में
आज हम सभी हैं मौज़ में।
किस किस से मांगने जाएंगे न्याय
छल, कपट, धोखा, फरेब़, अन्याय
न सुनी जाती पुकार किसी की यहां
है ग़रीब़ी, मुफ़लिसी न कोई उपाय
ईमान जा गिरा है हौज़ में
आज हम सभी हैं मौज़ में।

परिचय :- डॉ. रमेशचंद्र मालवीय
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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