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एक दिन एक “बूंद”

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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स्वयं के अस्तित्व को
आजमाने महासागर
को छोड़ चली
उसे दुनिया मे
भ्रमण करना था
दुनिया देखना था
बड़ी ही प्रसन्नता से
इधर-उधर, स्वतंत्रता का
आनंद उठाने लगी
धीरे-धीरे अकेलापन
उसे सताने लगा
उसे महासागर की
याद आने लगी
वो सोचने लगी,
कैसे वापस जा पाऊँगी
कितना विरोध किया था
महासागर ने मेरे
अकेले निकलने का,
उसका जीवन नारकीय
गंदगी से गुजरता हुआ
बड़े कष्ट से बीतने लगा!
जब भी उसकी जीवन
मे चुनौतियां आतीं
उसे महासागर की
बहुत याद आती
महासागर से मिलने की
उसकी तीव्र इच्छा होने लगी
वो बहुत हताश और
उदास रहने लगी
एक दिन सूरज
बहुत तेज गरम था
सूरज की तेज रोशनी ने
उसे ऊपर उठा दिया,
बहुत ऊपर बादलों के
पास से और भी बूंदो क़े
साथ नीचे फेंक दिया,
बूंद को बहुत दर्द अनुभव हुआ
वो एक नदी में गिरी,
कई दिनों तक वो नदी के
साथ इधर-उधर मचलती रही,
अखिरकार एक दिन
वो नदी महासागर में मिली,
बूंद बहुत खुश हुई
उसे अपने अस्तित्व
की अनुभूति हो गई थी,
दोनों एकबार फिर
से एकाकार हुए
बहुत खुश हुए!!

ये जीवन भी एक “बूंद” की तरह है
जिसे अंत मे “महासागर रूपी
ईश्वर में विलीन हो जाना है!”

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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