डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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फूफाजी, जिन्हें “रिटायर्ड जीजाजी” के उपनाम से भी जाना जाता है। इनका नाम लेते ही दिमाग में एक विशेष प्राणी की छवि उभर आती है। आप और मैं, हम सभी इस रिश्ते का जामा या तो पहन चुके हैं या पहनने वाले हैं। अब क्या कहें, इनके कारनामे ही कुछ ऐसे होते हैं जो इन्हें सभी रिश्तों में एक अलग पहचान देते हैं। अब शादी समारोह को ही ले लीजिए, इसमें फूफाजी की एक अलग ही रामायण, एक अलग ही गाथा होती है। उनकी चिरकाल से स्थिर भाव-भंगिमाएँ, जो उनके मुखमंडल पर विराजमान रहती हैं, उनकी चाल-ढाल और उनके मुखारविंद से निकले कुछ सनातनी जुमले-इन्हीं से आप उन्हें शादी में दूर से ही पहचान सकते हैं। उनकी उम्र की निचली सीमा लगभग 45 वर्ष होती है और ऊपरी सीमा का कोई अंत नहीं। मुँह और नथुने फुलाए हुए, दोनों हाथ पीछे बाँधे, बढ़े पेट और टेढ़े घुटनों से चलती उनकी “दिग्गज” सी चाल, निठल्ला सा टहलते हुए, लोगों का बारीकी से निरीक्षण करते हुए, ये आपको शादी में मिल ही जाएंगे।
शादी के घर में आते ही उनका पहला काम होता है यह देखना कि किस-किस ने उनके आने को गौर किया है, कौन-कौन “राम-राम” कर रहा है, कौन छोटा उनके पैर छू रहा है। फिर भुआ को चुपके से बता देना कि “फलाना कुछ ज्यादा मॉडर्न हो गया है, भूल गए हैं परंपराएँ आजकल के
लड़के।” शादी में घूम-घूम कर जो कोई गलती से इन्हें राम-राम कर दे, उसी को पकड़कर शादी के अपने अनुभव उंडेलने और इस शादी के आयोजन में हुई खामियों की जड़ तक पहुँचने का पूरा रसास्वादन करते हैं। उनका मुख्य संवाद है – “अजी हमसे पूछा ही नहीं।” जैसे, “गार्डन भी
हमसे कहते ना, गुप्ता जी का करवाते। पिछली बार गोयल हैं ना, इन्हीं साले साहब के पड़ोसी, उनकी शादी में करवाया था, क्या व्यवस्था जी, पूछो मत।”
ये हर प्रकार के आयोजन में हमेशा पीछे की लाइन में मिलेंगे और एक कान हमेशा अपने नाम की अनाउंसमेंट पर टिका रहेगा कि उन्हें बुलाया जा रहा है या नहीं। इस प्रकार से ये सुनिश्चित करते हैं कि साले साहब के परिवार को फूफा के अस्तित्व की जानकारी है या नहीं। भुआ बार-बार भतीजे को कान में कहती हैं कि फूफा को बुलाना मत भूलना। अवसर कोई भी हो, चाहे रिसेप्शन में दूल्हा-दुल्हन के साथ फोटो खिंचवाने की बात हो, चढ़ाई के दौरान नृत्य का मौका, बंधनवार बाँधने का समय हो, इनको हर कार्यक्रम में बुलाना आवश्यक होता है। इनकी ना-नुकर को गंभीरता से न लेना आपके धैर्य की परीक्षा हो सकता है।
अगर फूफाजी दूसरे शहर से आ रहे हैं, तो उन्हें बार-बार याद दिलाना पड़ेगा कि शादी आज की ही है। अगर फूफाजी कहें कि “बस, निकल लिए हैं,” तो उस पर विश्वास न करें क्योंकि चार बार फोन करने के बाद ही वो घर से निकलेंगे। और फिर आपको रास्ते में भी दो बार फोन करना पड़ेगा, वरना जरूरी नहीं कि फूफाजी रास्ते से ही तुनककर वापस लौट लें। बरात की चढ़ाई के दौरान नाचते हुए लोगों में भी इनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। अगर आप इन्हें गौर से देखें तो पाएंगे कि डीजे की धुन पर इनके पैर धीरे-धीरे थिरक रहे हैं, और ये बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं कि कोई इन्हें पकड़कर नाच घेरे में ले जाए। एक बार नाचने में आ जाएं तो फिर इन्हें रोकना मुश्किल हो जाता है। नाचते वक्त इन पर इनके साले नोट बरसाएं बिना फूफा का नृत्य अधूरा ही लगता है। और फिर ये वापस आकर रूठने वाली मुद्रा में आ जाते हैं।
अगर आप फूफाजी को ढूंढ रहे हैं और कहीं नहीं मिल रहे तो एक बार रसोई घर जरूर चेक कर लें। शादी-ब्याह में हलवाई के पास ये अवश्य खड़े मिलेंगे, दोनों हाथ पीछे बाँधे, हलवाई की हर हरकत का निरीक्षण करते हुए। “बेसन घोल पतला है,” “गुलाब जामुन की चाशनी थोड़ी कड़क है,” जैसी टिप्पणियाँ छोड़कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। काजू-बादाम की थैलियों पर इनकी विशेष नजर होती है, और हलवाई की नजर से बचाकर साले जी को थैलियाँ थमाकर अपनी चतुराई की शेखी बघारते हैं। दरअसल, इन्हें हलवाई के पास लगाया ही इसलिए जाता है ताकि बाकी कार्यों में व्यवधान न डालें। आपको ये कन्यादान के काउंटर पर अपनी टाँगे फैलाए, चश्मा लगाए, डायरी में नाम लिखते हुए मिल जाएंगे, या फिर विदाई में थैलियों में साड़ी, लिफाफा, नारियल जमाते हुए। ये पात्र शादी-ब्याह की रंगीनियों में अपना एक अनोखा रंग भरते हैं, जिनके बिना कोई भी आयोजन अधूरा सा लगता है।
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही आपकी पहली पुस्तक नरेंद्र मोदी का निर्माण : चायवाला से चौकीदार तक प्रकाशित होने जा रही है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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