Wednesday, January 8राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

थोड़ा सा इंतजार …

सुधा गोयल
बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश)
********************

                        “राम-राम रामधन काका”- दोंनो हाथ जोड़ दिए मेघा ने। काका को देखकर मेघा के चेहरे पर खुशी नाच उठी। “सुखी रहो बिटिया। कैसी हो?” अच्छी हूं काका, सामने तो खड़ी हूं”-हंस पड़ी मेघा “वही तो देख रहा हूं क्या बढ़िया कोठी है। देखकर आंखें जुड़ा गईं। अरे बिटिया बाहर जो चौकीदार खड़ा है अंदर ही ना आने दे रहा था। मैंने भी कड़क कर कहा कि तुम हमें जानत ना हो। हम साब की ससुराल से आए हैं। सो बिटिया वो हमें नीचे से ऊपर तक देखने लगा। हमें फिर जोश आ गया। अबे ऐसे क्या देखत हो कभी आदमी नहीं देखा। जा मेरी बिटिया को बुला ला और तभी आवाज सुनकर तू बाहर निकल आई। ससुरा अंदर भी आने देता या बाहर से ही लौट जाना पड़ता”- कहते-कहते काका ने अपने दोनों पर सोफे पर रख दिए।
पर्दे के पीछे खड़े राही और गौरा ने देखा तो हंस पड़े और बोले -“स्टूपिड… पता नहीं मम्मा ऐसे लोगों को कैसे सह लेती हैं? ये नहीं कि बाहर से ही विदा कर दें। यहां ड्राइंग रूम में लाकर बिठाया है। सारा कालीन जूतों से गंदा कर दिया है। राही उसके पैर देख कितने गंदे हैं। उन्हें सोफे पर रख कर बैठा है। मम्मा कुछ भी नहीं कह रहीं, बल्कि हंस-हंसकर बातें कर रही हैं। मैं ही जाकर हटा देता हूं। पापा ने देख लिया तो कितना गुस्सा करेंगे।”
राही ने गौरा को कुछ भी करने से रोक दिया। इस व्यक्ति के जाने के बाद मम्मा से बात करेंगे। अरे हां गौरा तूने इस आदमी के सिर पर बंधा इतना भारी कपड़ा देखा। क्या कहते हैं इसे?”
“पता नहीं भैया मम्मी से पूछूंगी। इस समय चलकर वीडियो गेम खेलते हैं। कहीं मम्मा ने हमें यहां देख लिया तो डांट पड़ेगी।” दोनों अपने कमरे में जाकर खेलने लगे इधर-उधर चोर नज़र से देखकर मेघा ने पूछा -“कैसी है मां? उन्होंने कुछ कहा?”
“हां बिटिया हालत अच्छी नहीं है तुम्हारी मां की। तुमसे मिलने को तड़प रही है। तुम्हारे अलावा उनका है ही कौन? श्रवण विदेश गया तो वहीं का होकर रह गया। थोड़ा टाइम निकाल कर मां से मिल लो। यह चिट्ठी दी है।”
मेघा ने चिट्ठी लेकर जल्दी-जल्दी पढ़ी। आंखों से गंगा जमुना बहने लगी।
“न-न बिटिया, मां का दर्द बेटी ही समझ सकती हैं।”
“मैं जल्दी ही आऊंगी काका मां को बोल देना” और अंदर जा अलमारी खोल अपने पर्स से दस हजार रुपए निकाल एक लिफाफे में डालें।जल्दी-जल्दी दो चार पंक्तियां लिख पत्र बंद कर काका को थमा दिया। काका यह चिट्ठी मां को दे देना”
“अच्छा बिटिया”- कहकर काका ने चिट्ठी जेब में रख ली और एक थैला देकर बोले- “ये सामान तुम्हारे लिए भेजा है।”
थैला पकड़ बिना देखे अंदर स्टोर की अलमारी में रखते समय मेघा को ध्यान आया कि इतनी देर हो गई काका को अभी तक जलपान भी नहीं कराया। क्या सोचते होंगे? मंगला को आवाज लगाकर जलपान मंगाना उचित नहीं लगा। काका को देखकर वह भी हंसेगी। स्वयं ही प्लेट में तले काजू, सोन हलवा, मठरी और चाय ट्रे में रखकर काका के पास पहुंची- “काका थोड़ा जलपान कर लो। मैं तो मां की बातों में भूल ही गई थी।”
“अरे कहां भूली बिटिया सब तो याद है “- और काका ने पूरी प्लेट साफ कर एक लंबी सी डकार ली। मेघा ने फिर चारों तरफ देखा। कोई सुन या देख तो नहीं रहा। सामने दीवार घड़ी पर नजर डाली। अक्षय के आने में आधा घंटा है। तब तक काका को भेज देना चाहिए। अक्षय तो एक पल को भी सहन नहीं करेंगे। मां से हटकर मेघा का ध्यान अक्षय की ओर घूम गया। वह खामोश हो गई।
“जमाई बाबू और बच्चे नहीं दीख रहे बिटिया?”
“काका बच्चे वीडियो लाइब्रेरी गए हैं और आपके जमाई बाबू का कोई ठिकाना ही नहीं कि कब लौटें। साफ झूठ बोल गई मेघा। यदि कहे कि अक्षय आधा घंटे बाद घर लौटकर आ जाएंगे तो काका बिना मिले नहीं जाएंगे। वह जानती है कि अक्षय काका का सम्मान करने की जगह अपमानित ही करेंगे साथ ही दो-चार जली कटी उसे भी सुना देंगे।
“जमाई बाबू का काम ठीक-ठाक चल रहा है ना। इतनी बड़ी कोठी देखकर आंखें जुड़ा गईं। भौजी को बोलूंगा कि बिटिया स्वर्ग में रह रही है।”
“हां काका”-और खो गई मेघा अपने स्वर्ग की चहारदीवारी में।
“बिटिया, भौजी को यहीं बुला लो। जी जाएगी थोड़े दिन। वहां अकेली पड़ी पड़ी रोती रहती है।”
“हां काका, मैं आऊंगी और मां को साथ ले आऊंगी। आप मां को बोल देना।”
“अच्छा बिटिया अब हम चलें। शहर में एकाध काम भी है”- काका से पीछा छुड़ाने के लिए मेघा ने जल्दी से हाथ जोड़ दिए। चाहती तो लंच के लिए रोक सकती थी, लेकिन अपने ही घर में उसे ऐसा अधिकार न था। यह घर उसका कहां है। अक्षय का है।
काका को जल्दी-जल्दी बाहर के दरवाजे तक छोड़ आई। उनसे दोबारा आने का आग्रह भी नहीं किया। कितनी मजबूर है। मेरा दर्द कौन समझ सकता है। उसने जल्दी से अंदर पहुंच कर स्वयं ड्राइंग रूम की सफाई की। सब कुछ यथावत किया। झूठे बर्तन उठाकर सिंक में डालें। एक नजर अपनी सूरत पर डाली घड़ी की सुइयां तेजी से आगे बढ़ रही थी। अक्षय और उसकी दूरी मात्र दस मिनट बची थी इतने में ही हांफ गई। मेघा ने एक गिलास ठंडा पानी पिया और धम्म से सोफे पर आंखें बंद कर बैठ गई जैसे मिलों दूर का सफर तय करके आई हो।
कितनी तड़पती है मां से मिलने के लिए, लेकिन कैसे जाए? अक्षय तो सब कुछ पैसे की तराजू पर तौलने लगे हैं। मां बीते कल की गंवार औरत है। उस गंवार औरत की बेटी को अपनी पत्नी का दर्जा देकर कम एहसान नहीं किया है जो उसकी मां को भी यहां लाकर रखें। उसने मां की चिट्ठी निकाल कर फिर पढ़ी। मां ने लिखा था घर गिर गया है चार कड़ियों पर आधी छत टिकी है। पता नहीं वह भी कब हवा के झोंकों से गिर जाए। श्रवण का खत आए तो तू उसे लिख देना कि अपने घर की छत तो डलवा दे। तू ही एक बार आ जाती तो आंखें जुड़ा जातीं। तेरे लिए थोड़ी सी गजक और मूंगफली भेज रही हूं बहुत पसंद है तुझे।
पत्र को कई बार पढ़ा। मां का प्यार स्टोर के अलमारी में छुपा कर रखा है। अभी तक देखने का भी समय नहीं मिला। सबके सो जाने पर इत्मीनान से देखूंगी, चखूंगी। मां उसे अभी तक नहीं भूली है वही मां को भूल गई। मां के प्यार में कोई दिखावा कोई बनावट नहीं है। उसी के लिए बंधन क्यों है? मां से मिलने के लिए क्यों नहीं जा सकती? न जाए अक्षय और बच्चे पर वह तो जा सकती है।
श्रवण को क्या कहेगी? मां के घर के लिए क्या श्रवण वहां से रुपए भेजेगा? यहां आकर ठीक कराएगा। मां ही उसे याद करती रहती है। उसने मां को कभी याद नहीं किया। तभी एक विचार कौंधा था मेघा के मन में। भैया के नाम से मां को रुपए भेज सकती है। मां का घर सही करा सकती है। पचास हजार रुपए तो उसी के अकाउंट में है जिसका अक्षय को पता नहीं है।
सोच कर उसे थोड़ी तसल्ली हुई। याद आया कैसी दीवानी थी मूंगफलियों की। पिताजी लेकर आते और वह आधी तभी चट कर जाती। सारे घर में घूम-घूम कर खाती। मां सफाई करती जाती और बड़बड़ाती जाती। कब सुधरेगी मेघा? क्या पराए घर जाकर भी ऐसे ही करेगी?
वही मूंगफलियां अब उसे याद नहीं है पर मां को याद है। मूंगफली छीले हुए उसे जमाना हो गया है। उसका मन हुआ भाग कर स्टोर में जाए मुट्ठी में मूंगफली भर ले और सारे घर में घूमते हुए छील-छीलकर खाए।
गुड़ की गजक याद करते ही उसके मुंह में पानी आ गया। मजाल जो एक दिन भी गजक उसे ना मिले। नया गुड़ आता और मेघा की गुड़ रोटी शुरू हो जाती। शादी के तुरंत बाद मां को अपनी मेघा की याद आई और पिताजी उसकी पसंद की चीज लिए ससुराल आप पहुंचे। उसका सारा उत्साह खत्म हो गया।
“हमारी बहू तो पक्की देहातिन है। इसे मूंगफली पसंद हैं और हम काजू व्यर्थ ही मंगाते हैं।”
नन्द ने कहा- “भाभी के घर से मेवा आई है। ऐसी मेवा तो हमारे नौकर भी नहीं खाते।”
मेघा का रो-रो कर बुरा हाल। पिताजी तो लाड़-प्यार कर चले गए। शाम को सास ने विष भरा ताना मारा – “अक्षय बेटा तेरे ससुर आए थे। थोड़े फल-फूल लाए थे। मेघा अक्षय को भी खिलाना।”
मेघा को काटो तो खून नहीं। मां-बाप के प्यार का यह नतीजा निकलेगा उसने सोचा भी नहीं था। अपमान व क्रोध में मां को चिट्ठी लिखने बैठी अपनी पसंद तुम्हारे घर ही छोड़ आई। यहां न ई पसंद बनाऊंगी।
लिखने के बाद चिट्ठी भेजी नहीं फाड़ कर फेंक दी। मां के प्यार दुलार को क्यों दुख पहुंचाया जाए। उसमें उनका क्या कसूर?
जब तक पिताजी रहे कुछ ना कुछ उसकी पसंद का लेकर आते रहे। वह कमरे में छुपा कर रख देती। मौका देख स्वयं चखकर नौकरों में बांट देती। एक बार अक्षय ने भी कहा-” मेघा अपने पिताजी को बोलो यहां यह सब ना लाएं। वे पैसे खर्च करते हैं और यहां नौकरों को देना पड़ता है।”
मेघा ने लाख चाहा कि वह मना कर दे पर बात जवान से फूटी ही नहीं। वे तो यही समझते रहे की मेघा की ससुराल वालों को यह सब पसंद है। मां का भ्रम उसने आज तक नहीं तोड़ा। उसने मन ही मन निश्चय किया कि एक बार मां से मिलने जाने के लिए अक्षय को मना ही लेगी।
आंखें लग गई और स्वयं को उसने मां के समीप पाया। मैं आ गई मां तुमने मुझे बहुत याद किया मैंने भी याद किया।
“सोते-सोते यह क्या मां मां कर रही हो मेघा और आज यहां सोफे पर?” हैरान परेशान अक्षय ने मेघा को हिलाया। मेघा एकदम चौंककर हड़ बड़ाकर उठ बैठी।
“बैठी रहो उठो मत। आज मैं तुम्हें एक बात बताने वाला था। हम अगले सप्ताह तुम्हारे गांव चल रहे हैं। वहां तुम्हारी मां वाला घर और आसपास की जमीन खरीदनी है। वहां एक फैक्ट्री डालनी है तो मां से बात कर लेना।”
चौंक उठी मेघा- “यह क्या कह रहे हो अक्षय? घर तुम्हें देकर मां कहां जाएगी? फिर मां से बात क्या करनी? मां तो तुम्हें घर ऐसे ही दे देगी।”
“मुझे ऐसे ही किसी का एहसान नहीं लेना”।
तो तुम्हें किसी को बेघर करने का अधिकार किसने दे दिया?” पहली बार अक्षय से उलझ पड़ी मेघा”- उसने कसकर मुट्ठियां भींच ली जैसे कोई उसकी नन्ही-नन्ही मुट्ठियों से मूंगफली और रेवड़ियां छीन रहा हो।
“मां को बेघर कहां कर रहा हूं? उन पैसों से मां को नया छोटा सा घर दिला देंगे”
“और मां उन यादों का क्या करेगी जो यादें उनसे जुड़ी है। कहां से लाएंगी वे पड़ोसी जो सुख-दुःख में उनके साथ देते हैं। तुमने तो उनकी और कभी मुड़कर भी नहीं देखा। आज तुम्हारी फैक्ट्री में मां का घर आड़े आ गया। तुम तो मां का मजाक उड़ाते थे। जाने कब से मेघा विष वमन करना चाहती थी।
“भावुक नहीं व्यवहारिक बनो मेघा”
“क्या मेरी मां मां नहीं है क्या मैं राही गौरा की मां नहीं हूं। मां बच्चों के रिश्तों में भी व्यवहारिकता? तुम कैसे इंसान हो अक्षय? कल अपने लाभ के लिए अपने बच्चों की भी बलि चढ़ा देना?”
“अपनी जबान को लगाम दो मेघा। बहुत हो चुका। मैं सुन रहा हूं तो इसका मतलब यह नहीं हुआ कि तुम बहस करती जाओ। तुम अच्छी तरह जानती हो कि मुझे जो अच्छा लगता है मैं करके रहता हूं।”
“तो तुम भी कान खोल कर मेरी बात सुन लो। आज से पहले मैं तुम्हारी बात सिर झुका कर सुनती आई। कभी विरोध नहीं किया, लेकिन अब मां मेरे साथ रहेगी मां के सम्मान के साथ। उस घर का मोह ना मुझे है ना मां को। तुम यही समझ लेना कि घर के बदले मां को रोटी खिला रहे हो। वृद्धावस्था में हर बेटा बेटी का फर्ज बनता है कि उनकी सेवा करें।”
अक्षय को लगा कि अब बातों से मेघा को फुसलाना आसान नहीं है। पानी जब सिर पर चढ़ जाता है तो सारे किनारे ध्वस्त कर देता है। मेघा का यह रूप इससे पहले अक्षय ने नहीं देखा था। हार कर उसने हथियार डाल दिए।
एक सप्ताह बाद मेघा खुशी-खुशी मां को लेने जा रही है। उसने मां के लिए एक अलग कमरा तैयार कर दिया है। राही और गौरा को भी गांव देखना और अपनी नानी मां से मिलना है।
गाड़ी मां के द्वार पर पहुंची। वहां गांव वालों की भीड़ लगी है। मेघा को देखकर रामधन काका आगे आए- “थोड़ी सी देर कर दी बिटिया। भौजी याद करते-करते चली गई”- सुनकर मेघा को लगा मां ने मर कर उसे शर्मिंदगी से बचा लिया। कैसे कह पाती कि अपना एक मात्र घर अपने दामाद को दे दो और मां की ममता पर, बेचारगी पर मेघा स्वयं को ना रोक सकी और मां से लिपटकर रोने लगी। “मां थोड़ा तो इंतजार किया होता……”

परिचय :– सुधा गोयल
निवासी : बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *