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लो बीता है फिर एक साल

विजय गुप्ता “मुन्ना”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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लो बीता है फिर एक साल, क्या खोया क्या ही पाया।
हम तो गणित लगाना भूले, यूं ही किस्मत ले आया।

अच्छी बुरी खबर सदा मीडिया ने सभी को दिया होगा।
अपने हृदय स्वभाव मुताबिक शौक से ही लिया होगा।
दंगल विवाद राजनीति का नया द्वार खुलता होगा।
सनातन राह पे आने से, लाखों हृदय टूटा होगा।
पांच सौ वर्ष बहस उपरांत, भव्य राम धाम सजाया।
सम्मान मार्ग देख किसी ने, बहुतों को ही ललचाया।
लो बीता है फिर एक साल, क्या खोया क्या ही पाया।
हम तो गणित लगाना भूले, यूं ही किस्मत ले आया।

विवाद तनातनी मारकाट किस्से नित्य ही पढ़ा सुना।
धर्मजाति हत्या जिहादकथा, का मनमाना रूप चुना।
विदेश नेतृत्व लाजवाब, देश लोग ने खूब धुना।
कहीं उपलब्धि जानदार पर बहुतों ने किया अनसुना।
चुनाव अखाड़े में पटकनी करतब रोचक दिखलाया।
दिखता जहां योजना वर्चस्व, मसखरी ठिठोली छाया।
लो बीता है फिर एक साल, क्या खोया क्या ही पाया।
हम तो गणित लगाना भूले, यूं ही किस्मत ले आया।

घटना दुर्घटना चक्र फेर, जनता मन जीता हारा।
घर का सपना साकार कहीं, मुफ्त सुरा से पौ बारा।
साजिश षडयंत्रों का घेरा राष्ट्र में गजब विस्तारा।
धर्मयुद्ध की लौ कर्म जतन, सनातन बोर्ड हमारा।
इंसान वतन गहराई को, संविधान ने समझाया।
कोरे पृष्ठ प्रश्न और बहस, माहौल विशेष बनाया।
लो बीता है फिर एक साल, क्या खोया क्या ही पाया।
हम तो गणित लगाना भूले, यूं ही किस्मत ले आया।

रंग अच्छा बुरा आभास में, गुजरता साल बतलाए।
आती जाती आस सांस में, बस भविष्य ही लहराए।
अटूट संघर्ष की बुनियाद तो भी भ्रांति क्रांति छाए
जीवन शेष में शांति डोरी प्रभु शंकर ही पकड़ाए।
पांच दशक कथा सारांश में, उनको दर्पण दिखलाया।
मुन्ना घिरा जब कंटक पत्थर, साहस से बहुत हटाया।
लो बीता है फिर एक साल, क्या खोया क्या ही पाया।
हम तो गणित लगाना भूले, यूं ही किस्मत ले आया।

जाते जाते लिखते छपते, संदेश सही जनता को।
बहुत सहा भारत ने जानो, शेष नहीं कुछ खोने को।
हंसने को संसार सारा, पास रहेगा रोने को।
वक्त नजाकत से सीख यही, सही समय है करने को।
महापुरुष बलिदानों ने मन, मुदित पुरुषार्थ जगाया।
बहुत लुटी है अस्मत किस्मत, नया वर्ष जश्न मनाया।
लो बीता है फिर एक साल, क्या खोया क्या ही पाया।
हम तो गणित लगाना भूले, यूं ही किस्मत ले आया।

घर नुक्कड़ संस्था समाज में, छिपती चालों को जाना।
सेंध चले भीतर दांव-पेंच भाग्यवश ही पहचाना।
मिलते पद प्रतिष्ठा खुशी शान कहे प्रदर्शन बेगाना।
आप खुद हैं मार्ग प्रदर्शक, मानो दिल में जो ठाना।
कदम कलम कसम से तौलिए, नया वर्ष जो लहराया।
दायित्व वहन सहन शक्ति से, परचम जिसने फ़हराया।
लो बीता है फिर एक साल, क्या खोया क्या ही पाया।
हम तो गणित लगाना भूले, यूं ही किस्मत ले आया।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता “मुन्ना”
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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