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वो क्यों है?

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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जो वर्तमान है,
वो क्यों है?
हम बने जिम्मेदार
कायरता तो जैसे
हमारे ख़ून में थी
और इन्तज़ार
करना हमारा जीवन था।
प्रार्थना पत्रों और
निवेदनों की भाषा
हमें घुट्टी में
पिलायी गयी थी
और मामूली लोगों के
प्रति थोड़ी दया और
कृपालुता ही
हमारी प्रगतिशीलता थी।
हमारी दुनियादारी को लोग
भलमनसाहत समझते थे।
संगदिली हमारी उतनी ही थी
जितनी कि तंगदिली।
अत्याचार और मूर्खता से
उतने भी दूर नहीं थे हम
जितना कि दिखाई देते
थे और दिखलाते थे।
जब ज़ुल्म की
बारिश हो रही हो
और कुछ भी बोलना
जान जोखिम में डालना हो
तो हम चालाकी से
अराजनीतिक हो जाते थे
या कला और सौन्दर्य
के अतिशय आग्रही,
या प्रेम, करुणा,
अहिंसा, मानवीय पीड़ा,
ख़ुद को बदलने आदि
की बातें करने लगते थे।
और लोग इसे हमारी
सादगी और भोलापन
समझते थे या
अतिसंवेदनशीलता।
न जाने हम दुर्दान्त
तपस्वी थे वनवासी
या कला की असाध्य
वीणा के अप्रतिम साधक
या अपना हृदय किसी
ऊँचे शमी वृक्ष के कोटर में
रखकर भेस बदलकर
बस्तियों में घूमने वाला
कोई मायावी अमानुष
या महज एक
दीर्घजीवी कछुआ,
लेकिन इतना
तय था कि कुछ भी
मनुष्योचित
नहीं रह गया था
हमारे भीतर।
हमारी आत्मा की
आँखें नहीं थीं
और न ही कान।
हाँ लेकिन,
आज की ही तरह
लिख-बोल हम
बहुत सुन्दर लेते थे।
खुद से पूछें :
बेहतर पीढ़ी के लिए
अब बदलेंगे क्या?

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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