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सिर्फ मौन रह जाता है

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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हृदय की पीड़ा भीतर
ही दबी रह जाती है
चेहरे की रेखाएं सब
सच कह जाती हैं
सत्य वदन कारण,
रिश्ते हो जाते हैं
तितर-बितर,

भाव सोख लेता है
हृदय, संवाद नहीं करता
सिर्फ मौन रह जाता है …

भ्रांतियां-झूठ,
भ्रम-भटकन,
हृदय करने लगता
है आत्मचिंतन

भावनायें विलुप्त
हो जाती हैं,
सुलगने लगती
हैं सिसकियाँ,
एक विरोध-
प्रतिरोध उभरता है,
स्मृतियों के पुलिंदे से,
द्रवित मन सूकून ढूंढता है
अकेला प्रतीक्षारत
किन्तु बस केवल
मौन रह जाता है …

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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