डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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लो जी, अब तनिक कुर्सी प्रेमियों को भी कुछ खुशखबरी सुना दें। कुर्सी का बिछोह सबसे बड़ा गम है। कुर्सीगिरी ऐसे ही नसीब नहीं होती। अपनी कुर्सी कैसे बचाए रखनी है, बस इसी जुगत में सब कुलबुलाते रहते हैं। कुर्सी की ऊँचाई भी छोटी-बड़ी होती रहती है। आपकी कुर्सी दिन दूनी, रात चौगुनी अपना कद ऊँचा करे, इसके लिए हम कुछ नायाब फार्मूले लेकर आए हैं। आप चाहते हैं कि आपको आपकी मनचाही कुर्सी मिले, और आपका सात जन्मों तक का कुर्सी-संगम बना रहे। कुर्सी को विरोधियों की बुरी नजर से बचाव मिले, तो आप ये फार्मूला ज़रूर अपनाएँ। शर्तिया सफलता की गारंटी बिलकुल चांदसी दवाखाने के हकीम की मर्दानगी ताकत वापस दिलाने की गारंटी जैसी। सबसे पहले, अपने गले में रुद्राक्ष की जगह किसी खाती से १०८ मनकों की कुर्सी बीड-नुमा माला बनवाएँ। इसे गले में डालकर रखें। सुबह-शाम गले से उतारकर इसका जाप करें। जाप के साथ यह मंत्र उच्चारण आवश्यक है: “ॐ कुर्स्याय नमः”
एक बार कुर्सी प्राप्त हो जाने के बाद, जिस प्रकार से आप रंग बदलते हैं, उसी प्रकार से मंत्र जाप भी बदल लें। अब यह मंत्र जाप करना है: “अधिष्ठानम् अक्षयं कुरु”
इस मंत्र का अर्थ है, “कुर्सी को स्थिर और अक्षय बनाओ।” यह मंत्र कुर्सी को स्थायित्व प्रदान करने की प्रार्थना करता है, जिससे कि वह सदैव आपके नियंत्रण में रहे और आपको उस पर से गिरने, उतरने, धकियाने या गिराने का भय न हो। यह मंत्र कुर्सीधारकों को एक आध्यात्मिक आश्वासन प्रदान करता है कि उनकी कुर्सी उन्हें आत्मविश्वास और शांति प्रदान करेगी। कुर्सी प्राप्त होने के बाद यदि कुर्सी पूजन महोत्सव रखा जाए, तो आपकी कुर्सी की स्थिरता की शत-प्रतिशत गारंटी है। मान लीजिए, आपका नया-नया प्रमोशन हुआ है या आपको जुगाड़ लगाकर मंत्री पद प्राप्त हुआ है। नई नवेली कुर्सी आपको प्राप्त हुई है।पता लगा की कुर्सी -संगम को गिने चुने चार दिन भी नहीं हुए कि आ गया कोई न कोई विलेन आपके इस संगम को गम में बदलने के लिए.. । पहली बात तो यह कि इतनी आसानी से कहाँ यह कुर्सी मिलती है? भाई, बड़े जतन से, जोड़-तोड़, जुगाड़ और कुछ नये-पुराने वादों की मिश्रित खाद से यह कुर्सी हासिल की गई है।
अब, इससे पहले कि कुर्सी के साथ रंगरेलियाँ मनाना शुरू करें, क्यों न एक बार कुर्सी पूजन को विधिवत निपटा लें? तो चलिए, आज हम लोग कुर्सी का पूजन करेंगे, विधि-विधान से। पंडित जी को बुला लें, शुरू में आप मुझे भी बुला सकते हैं। आजकल तो वैसे भी ब्रिज कोर्स का ज़माना है। सोचा है, डॉक्टरी बढ़िया चले न चले, ये कुर्सी-पूजन कर्मकांड से ही कमा लेंगे। तो हम कुर्सी के लिए विशेष मंत्रोच्चार करेंगे, ताकि कुर्सी से पर किसी की नज़र न उलझे और इसमें नवग्रह-शक्ति का प्रयोग करके इसे और भी अजेय बनाया जा सके।
मंत्र इस प्रकार है: “ॐ कुरसीयै नमः, ॐ बैठकाय स्थायिनमः सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा।”
इस मंत्र का अर्थ है कि कुर्सी पर बैठने वाले को स्थायित्व प्राप्त हो और कोई भी चुनावी हवा इसे उड़ा न सके। पंडित जी इस कुर्सी के चारों ओर लोभ, मोह, काम, क्रोध के फूल चढ़ाएंगे, जो राजनीति के पंचतत्व हैं। अब पूजा का मुख्य आकर्षण: चढ़ावा। चढ़ावे में मंत्री जी से अपने पूर्व वादों की माला, जनता के सपनों को चूर कर बनाए गए बुरादे की मिठाई, और विपक्ष की आलोचनाओं की धूप-बाती अर्पित करें। ये सब कुर्सी की सेवा में पेश करने से कुर्सी की ऊर्जा और बढ़ जाती है। अंत में, सभी आरती उतारें, जिसमें कुर्सी के चारों ओर मीडिया के कैमरे और राजनीतिक समर्थकों की फ्लैश लाइट्स भी शामिल करें। ये सब प्रथम पूज्य आराध्य देव हैं, जो आपकी कुर्सी को टिकाए रखने में मदद करेंगे। आरती के बाद सभी मिलकर प्रसाद रूप में “सत्ता का स्वाद” मिश्रित मावे की मिठाई का भोग लगाएं।
कुर्सी पूजन के पश्चात माहौल को और उत्सवमय बनाने के लिए “कुर्सी उत्सव” का आयोजन कर सकते हैं। इस आयोजन का प्रस्ताव और खर्च किए जाने वाले फंड को हाई लेवल मीटिंग में पहले ही स्वीकृत करवा लें। कुर्सी उत्सव को सालाना वार्षिक उत्सव की तरह ऑफिस प्रोसीडिंग में
शामिल करवाया जा सकता है। कुर्सी के स्वागत के लिए एक विशेष “कुर्सी रथ” का आयोजन किया जाए, जिसे समर्थकों द्वारा फूलों और गुब्बारों से सजाया जाए। इस रथ को उन चार नेताओं से खिंचवाया जाए, जिन्होंने आपकी कुर्सी को हथियाने में खींचातानी की थी। रथ यात्रा के दौरान बैंड-बाजे बजवाएं और “कुर्सी महारानी की जय” के नारे लगवाएं।
कुर्सी की महिमा को बखान करते हुए, एक विशेष भक्ति-गीत को गवैयों से गवाया जाए, जिसमें गीत के बोल हो सकते हैं: “कुर्सी तेरे साथ में, सब कुछ अपने हाथ में।” अगर दिल्ली तक आपकी पहुंच है, तो कृपया इस भक्ति गीत को भी लोकतंत्र के राष्ट्रीय गीत की मान्यता दिलवा दें। इस बहाने गीत की रॉयल्टी मुझे मिलती रहेगी, तो मेरा भी रोटी-पानी का जुगाड़ हो जाएगा। आप चाहें तो एक मजेदार कुर्सी दौड़ का आयोजन करवा सकते हैं, वैसे भी यह तो देश का राष्ट्रीय खेल घोषित हो जाना चाहिए था अब तक। इस खेल में तो सभी नेता पहले से ही माहिर हैं, इसलिए ज्यादा कुछ बताने की जरूरत नहीं होगी। सभी नेताओं को एबीएस अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठकर दौड़ना होगा। नेता बिना कुर्सी के
अपंग हैं, दीन-हीन और बेसहारा हैं। आप उन्हें दौड़ाएंगे तो वे एक कदम भी न चल सकेंगे। यह बहुत मजेदार खेल होगा, देखना कि कैसे सभी नेता अपनी-अपनी कुर्सियों को धकेलते हुए फिनिश लाइन की ओर बढ़ रहे होंगे। समारोह की अंतिम प्रतिस्पर्धा में, आप “कुर्सी टग ऑफ वॉर” जैसा खेल रख सकते हैं या रूमाल-झपट्टा की तरह “कुर्सी-झपट्टा” जैसा कोई खेल-यह आपकी मर्जी। कुर्सी को बीच में रस्से से बांध दीजिए, और फिर दोनों तरफ से दोनों गुटों के नेता रस्सी खींचें।
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही आपकी पहली पुस्तक नरेंद्र मोदी का निर्माण : चायवाला से चौकीदार तक प्रकाशित होने जा रही है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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