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सर्दी का मौसम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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धुंध छाई, लुप्त सूरज, शीत का वातावरण,
आदमी का ठंड का बदला हुआ है आचरण।

बर्फ में भी खेल है, बच्चों में दिखतीं मस्तियाँ,
मौसमों ने कर लिया है पर्यटन का आहरण।।

बर्फ का अधिराज्य है, चाँदी का ज्यों भंडार हो,
शीत ने मानो किया उन्मुक्तता अन-आवरण।।

रेल धीमी, मंद जीवन, सुस्त हर इक जीव है,
है ढके इंसान को ऊनी लबादा आवरण।

धुंध ने कब्जा किया, सड़कों पे, नापे रास्ते,
ज़िन्दगी कम्बल में लिपटी लड़खड़ाया है चरण।

पास जिनके है रईसी, उनको ना कोई फिकर,
जो पड़े फुटपाथ पर, उनका तो होना है मरण।

जो ठिठुरते रात सारी राह देखें भोर की,
बैठ सूरज धूप में गर्मी का वे करते वरण।

धुंध ने मजदूरी खाली, खा लिया है चैन को,
ये कहाँ से आ गया जाड़ा, करे जीवन-क्षरण।

ज़िन्दगी में धुंध है, बाहर भी छाई धुंध है,
ठंड बन रावण करे सुख की सिया का अब हरण।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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