डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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नाश्ते का अपना एक अनोखा दर्शन शास्त्र है। अगर गहराई से देखें, तो नाश्ता हमारे जीवन के अनसुलझे रिश्तों की रहस्यमयी गुत्थियों का साक्षी है। यह टूटते-जुड़ते रिश्तों में “आई लव यू” से लेकर “आई नीड टू टॉक टू यू” तक के भावों को परिलक्षित करता है। नाश्ता, टेबल पर रखा हुआ है या पेट में जाकर भी यह देखता है कि कौन बिल पे कर रहा है,बिल पे करने में आनाकानी कर रहा है या बिल पे करने में नबाबों की तरह झगड़ रहा है। लेकिन ’पहले आप की जगह पहले मैं ..’ “नहीं, इस बार मैं पे करूंगा। देखो, शादी के बाद तो मुझे ही करना है, क्यों न अभी से आदत डाल लूं!” या फिर लड़की के ब्रेकअप करके चले जाने के बाद लड़का बिल के भुगतान के लिए अपनी जेब टटोल रहा होता
है। यह सब कुछ नाश्ता देखता है, भोगता है और जीता है।
अच्छा नाश्ता जहां पल भर में लड़की को पसंद करा देता है, वहीं कभी-कभी नाश्ते में कमी लड़के वालों को निराश कर देती है। मामा जी बोलेंगे: “अरे जीजाजी, ऐसे घर में शादी करोगे? ढंग का नाश्ता भी नहीं परोसा!” कई बार उत्साही लड़की वालों द्वारा पूरे नाश्ते को लड़की के हाथों का बनाया हुआ बताने की कोशिश, लड़के वालों को संदेह के दायरे में ला देती है। “अरे भाई, लड़की को मुंह बनाए रखने से फुर्सत नहीं, क्या खाक बनाएगी नाश्ता?” हालांकि, कुछ उदार दिल वाले लोग भी होते हैं, जो कहते हैं: “अरे साहब, रहने दीजिए। सारी जिंदगी तो इसे पागल ही बनाना है लड़के को। अगर नाश्ता नहीं बनाया और बाहर से मंगा भी लिया, तो क्या फर्क पड़ता है?” नेताजी जब गरीब के घर नाश्ता करते हैं, तो वह अखबारों की सुर्खियां बन जाता है। चाहे नाश्ते के नाम पर एक कौर ही क्यों न मुंह में लगाया गया हो। नाश्ते में क्या रखा गया है, यह न केवल रिश्तेदारों की हैसियत बल्कि अपनापन और औपचारिकता की पराकाष्ठा को भी दर्शाता है। पहले नाश्ता खाने के लिए परोसा जाता था, आजकल दिखाने के लिए परोसा जाता है। नाश्ते में गुणवत्ता की जगह, लगाई गए प्लेटों की संख्या, चमचमाती कटलरी, इम्पोर्टेड नमकदानी, और करीने से सजे पेपर नैपकिन मेहमान को लुभाने के लिए प्रदर्शित किए जाते हैं। “हें हें… लीजिए, लीजिए… कुछ तो लीजिए भाईसाहब!” भाईसाहब के हाथों से गजभर दूर नाश्ते की प्लेट रखी जाती है। भाईसाहब नाश्ते को बस देखते हैं। मेहमान देवता स्वरूप होता है, और नाश्ता देवता को लगाया गया भोग। केवल देखने भर से ही उदरस्थ समझ लिया जाए …’देवता रुपी मेहमान प्रसन्न भये.. ‘ यह है नाश्ते का दर्शन शास्त्र। जितना बड़ा नाश्ता, उतनी ही अधिक संभावना कि मेहमान सोचने लगे कि इसे कहां से शुरू करें और कहां खत्म करें। इस बीच मेज़बान नाश्ते को भकोसने की योजनाओं पर पानी फेर देता है: “अरे, ओह अच्छा… चलो कोई नहीं। चाय तो लेंगे न आप? चाय मीठी लेंगे या फीकी?&”
नाश्ता, रिश्तेदारों के बीच संवादहीन स्वार्थों और औपचारिकताओं के दायरे में कैद होकर, मूक रूप से मेज़ पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। यह कोशिश करता है कि शायद यह दीवारें टूट जाएं। लेकिन सभ्यता की यह दीवारें मेहमान को रोककर रखती हैं। मेहमान हाथ बांधे हुए, नाश्ते के समुद्र में गोता लगाते हैं, लेकिन केवल उन मोतियों को ढूंढने में व्यस्त रहते हैं जो यह साबित कर सकें कि “हम भी ऐसा-वैसा नाश्ता नहीं करते।” नमकीन, काजू, पिस्ता, किशमिश, समोसे, और चटनी से सजी प्लेटों के इस समुद्र में गोताखोर चुनकर दो पिस्ता या नमकीन के दाने निकालता है और सभ्यता का प्रदर्शन करते हुए उन्हें मुंह में डालता है। सभ्यता का विहंगम प्रदर्शन “लीजिए, भाईसाहब, समोसे ठंडे हो रहे हैं।” लेकिन साहब की श्रीमती जी भाईसाहब की सभ्यता पर किए गए इस कुठाराघात से बचाव करते हुए बोलेंगी, “अरे नहीं, भाईसाहब, इनका कोलेस्ट्रॉल बहुत बढ़ा हुआ है। आजकल ये बस नींबू पानी लेते हैं।” फिर रसोई में नींबू खोजा जाता है। एक नींबू की कुर्बानी देकर शिष्टाचार निभाया जाता है। लेकिन दो घूंट लेने के बाद वह नींबू की शहादत भी निरर्थक साबित कर दी जाती है। सभ्यता की इस दिखावे वाली मन्नत को निभाने के लिए कितना कुछ त्यागना पड़ता है।
इस बीच कुछ नाश्ता-वीर ऐसे भी हैं जो भाषण-वीर भी होते हैं। उनसे दो शब्द बोलने के लिए या “लीजिए, कुछ लीजिए!” कहना, दोनों एक ही अर्थ में लिया जाता है। कहा तो बस दो शब्द के लिए गया होता है या कुछ लेने के लिए, लेकिन इन्हें पता है,अपनी अनौपचारिकता का बीभत्स प्रदर्शन करना ही है । उनके इस दुराग्रह के वशीभूत, भाषण के साथ-साथ पूरा नाश्ता भी निगलने की तैयारी हो जाती है। ऐसे लोग मेज़बानों की “हॉट लिस्ट” में रहते हैं। यार, इनको तो बस एक बार कह दो, ‘कुछ शब्द’ है ही नहीं इनकी फॉर्मेलिटी के शब्दकोष में … बस! औपचारिकता नाम की भी कोई चिड़िया होती है कि नहीं! नाश्ते में भी कर्मफल का सिद्धांत लागू होता है। जैसा आप किसी को परोसेंगे, वैसा ही आपको मिलेगा।
यदि आप चाहते हैं कि आपको अपनी मनपसंद का नाश्ता मिले, तो खुद ही लेकर जाइए। हें हें..रस्ते में आ रहा था तो खाजुमल के समोसे दिख गए..मैंने सोचा ले चलता हूँ…भाई हमें तो पसंद है..आज आप भी चख लीजिये… ।
घर की बनी चीज़ें सिर्फ उनके लिए होती हैं, जो आपके भूत, वर्तमान और भविष्य में कुछ मायने रखते हैं। आपके भूतकाल में किए गए अच्छे कर्म और भविष्य में आपसे निकलने वाले लाभ ही यह तय करते हैं कि आपको घर की बनी हुई चीज़ें परोसी जाएंगी या नहीं। नहीं तो पुराने नाश्ते की प्लेटों में थोड़ा बहुत रिफिल कर, झाड़-पोंछकर सर्व कर दिया जाएगा। राजनीतिक घरानों में, किस नेता ने किस नेता के घर नाश्ता किया, बस इतनी सी बात ही पार्टियों की जड़ें हिलाने, अख़बारों की सुर्खियां बनने और रातों-रात कुर्सियां हिलाने, सरकार गिराने के लिए पर्याप्त है। अगर नाश्ते में कोई कमी रह जाए, तो गठबंधन में गांठ पड़ने में देर नहीं लगती। गांवों की बात करें, तो नाश्ता बहन-बेटियों की शादी-पैरोजन (भात) में देन-दायजे की बुनियाद तय करता है। भात देने से पहले बहन के ससुराल वालों के द्वारा कराए गए नाश्ते का वजन मापा जाता है। यदि नाश्ते में देस घी और बादाम का हलवा खिलाया गया, तो भात समारोह में जाजम पर बैठे भाताइयों ने तय किया कि, “भैया, नाक पर मक्खी हम भी नहीं बैठने देंगे। दहेज में रु. १,५१,००० से कम नहीं देंगे।” दूसरे ने थोड़ा हल्का नाश्ता कराया, तो मोल-भाव की गुंजाइश बच गई। नाश्ता केवल नाश्ता नहीं, बल्कि समाज, सभ्यता और रिश्तों का आइना है। इसे कैसे परोसा गया, किसे परोसा गया और कितना परोसा गया, यही तय करता है रिश्तों की गहराई। जब-जब रिश्तों की ऊंच-नीच के किस्से गुनगुनाए जाएंगे, नाश्ता साक्षी भाव से अपनी उपस्थिति मूक रूप से दर्शाता रहेगा। बस, यही है नाश्ते का दर्शनशास्त्र।
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही आपकी पहली पुस्तक नरेंद्र मोदी का निर्माण : चायवाला से चौकीदार तक प्रकाशित होने जा रही है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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