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हमसफ़र

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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मेरी खुशियाँ हो तुम्हीं, हो मेरा उल्लास।
तुमसे ही जीवन सुखद, लब पर खेले हास।।

जीवन का आनंद तुम, शुभ-मंगल का गान।
सच, तुमने रक्खी सदा, मेरी हरदम आन।।

ऐ मेरे प्रिय हमसफ़र! तुम लगते सौगात।
तुमसे दिन लगते मुझे, चोखी लगतीं रात।।

हर मुश्किल में साथ तुम, लेते हो कर थाम।
तुमसे ही हर पर्व है, और ललित आयाम।।

संग तुम्हारा चेतना, देता मुझे विवेक।
मेरे हर पल हो रहे, तुमसे प्रियवर नेक।।

तुमको पाकर हो गया, मैं सचमुच बड़भाग।
तुम सुर, लय तुम गीत हो, हो मेरा अनुराग।।

तुम ही जीवन-सार हो, हो मेरा अहसास।
और नहीं आता मुझे, किंचित भी तो रास।।

तुमने आकर हे ! प्रिये, जीवन दिया सँवार।
तुम तो प्रियवर, प्रियतमा, प्यार-प्यार बस प्यार।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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