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खोदिए …रुकिए मत

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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खोदिए!
मस्जिद के नीचे खोदिए
मिलेंगी मूर्तियां
यक्ष, किन्नर, गंधर्व, देवों
देवियों की मूर्तियां
उसकी भी
जिसका मंदिर
ऊपर नहीं है.

मूर्तियों के नीचे खोदिए
मिलेंगे
मिट्टी के बर्तन खिलौने
उसके नीचे खोदिए
पत्थर के औज़ार
बर्तन और हथियार भी
सिर्फ़ पत्थर के.
उसके भी नीचे खोदिए
अस्थियां
खोपड़ी
ठठरियां
बचे-खुचे दांत मिलेंगे.

उसके भी नीचे खोदिए
रुकिए मत
अभी भी
आपके नीचे उतरने की
ख़त्म नहीं हुई है संभावना.
हालांकि
ज़िंदगी की शर्त थी
ऊपर उठने की
कींच में धंसने की नहीं
फिर भी
जितना नीचे
गिर सकते हैं
गिरिए
और खोदिए.
अब मिलेंगे
फ़ॉसिल्स
उन पेड़-पौधों
जीव-जंतुओं के
जिनकी कब्र पर
इस वक्त खड़े हो तुम.

तुम्हारी सभ्यता
तुम्हारे मंदिर-मस्जिद
गिरजे ख़ानकाह
सब खड़े हैं गर्व से
जबकि शर्म से
झुका होना
चाहिए था उन्हें
कि बेज़ुबान
वनस्पतियों
पशु-पक्षियों की कब्र पर
न जाने कब से खड़े हैं
निर्लज्ज की तरह.
अब और नीचे जाओगे
तो जल जाओगे
वहां
धरती के गर्भ में
धधक रही है आग.
यहां धरती क्रोध में है
यहां मत आना
तुम्हारे मंदिर मस्जिद भी
बचा नहीं पाएंगे तुम्हें.

ज़रा सी भी बची है
शर्म
तो हटा लो उस ज़मीन से
अपने देवी देवताओं को
मंदिर मस्जिद को
मूर्तियों
अस्थियों को
और हट जाओ तुम भी
उस ज़मीन से
जो तुम्हारी नहीं है
और सौंप दो उसको
जिसने सबसे पहले
रखे थे
अपने नन्हें नन्हें पैर
उस प्यारी सी धरती पर
जो अछूती थी
तुम्हारे घिनौने पापों से
जो पवित्र थी
सुबह की धूप की तरह
अगर
नीचे जाने का शौक ही है
तो उतना नीचे जाओ
कि तुम्हें साफ़-साफ़ दिखाई दे
तुम्हारी नीचता
और क्रूरता
जो तुमने किए
इस धरती के साथ
और तब
हो सकता है
तुम्हें शर्म आए
अगर ज़रा सी भी
बची हुई है तो.

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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