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हम जानवर बेजुबान नहीं हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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हम जानवर बेजुबान नहीं हैं,
पर इंसानो की नीयत से अंजान है
हमे मरता छोड़ देते
ये तो हैवान है, ना जाने क्या है!

हमे घर लाते,
खूब लाड प्यार दिखाते
जब हम बूढे और लाचार हो जाते
हमको अंजाने रास्तो
पर मरने को छोड़ जाते
हम कुछ समझ ही नहीं पाते
ठगे से रह जाते !

अपना अपना त्यौहार मनाते
खुश होते खुशियां बांटते
मग़र ना जाने क्यूँ
हमारी बलि चढ़ाते
जंगलों में हमारा
शिकार करते
हमारे बच्चों को
अनाथ कर जाते
खुद के स्वाद के लिए
हमको हलाल करते
ये कौन सा और
कैसा त्यौहार मनाते
हम कुछ समझ नहीं पाते !

हम में से किसी
को माता मानते
पूजा अर्चना करते
उसी के सहारे अपना
परिवार चलाते
उसके दुधमुंहे बच्चों
का दूध खुद पी जाते
जब वो बूढी और
लाचार हो जाती
तब कसाई के हाथों में
कटने को सौप देते
इंसानी स्वार्थ और लालच
पर हम सब हैरान रह जाते !

सडकों पर विचरते हमको
गाडियों तले रौंद देते
इंसानो की इस करतूत
से हम तिल तिल मरते !!
कौन कहता है हम
में समझ नहीं है ??

प्रकृति का संतुलन ब
नाए रखते हैं हम
सृष्टि की अनमोल
रचना हैं, धरोहर हैं हम
इंसानो से ज्यादा
ज़ज्बाती हैं हम !

इंसान इंसान होकर
इंसान नहीं रहा
क्या प्रभु से नजरे
मिला पाएगा
जब ईश्वर का बुलावा
उसको आयेगा??

हम कुछ नहीं मांगते
बस जीवन जीना चाहते हैं
प्यार-दुलार, करुणा और
दया की भीख मांगते हैं
हम भी जीव (जानवर) हैं
धरती पर जीने का
अधिकार मांगते हैं!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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