प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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रहना पत्थर बन नहीं, बन जाना तुम मोम।
मानवता को धारकर, पुलकित कर हर रोम।।
पत्थर दिल होते जटिल, खो देते हैं भाव।
उनमें बचता ही नहीं, मानवता प्रति ताव।।
पत्थर की तासीर है, रहना नित्य कठोर।
करुणा बिन मौसम सदा, हो जाता घनघोर।।
पत्थर जब सिर पर पड़े, बहने लगता ख़ून।
दर्द बढ़ाता नित्य ही, पीड़ा देता दून।।
पर पत्थर हो राह में, लतियाते सब रोज़।
पत्थर की अवमानना, का उपाय लो खोज।।
पर पत्थर पर छैनियों, के होते हैं वार।
बन प्रतिमा वह पूज्य हो, फैलाता उजियार।।
सीमा पर प्रहरी बनो, पत्थर बनकर आज।
करो शहादत शान से, हर उर पर हो राज।।
पत्थर से बनते भवन, योगदान का मान।
पत्थर से बनते किले, रखती चोखी आन।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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