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साँसों का क्या ठिकाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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कब रुक जाएं चलती साँसें,
कोई नहीं ठिकाना?
चलते रहना तुम जीवन भर,
कहीं नहीं रुक जाना।

जब तक साँसें, तब तक जीवन,
दिल की धड़कन चलती।
जब रुक जाती दिल की धड़कन,
तब काया है जलती।

साँसों से जीवन चलता है,
बिना साँस रुक जाता।
नहीं ठिकाना है साँसों का,
मानव समझ न पाता।

मानव गर्भ छोड़कर ज्यों ही,
बाहर आ जाता है।
चलने लगती साँसें उसकी,
जीवन पा जाता है।

निर्धारित साँसें मिलती हैं,
प्रभु प्रदत्त जीवन में।
साँसें ही ऊर्जा भरती हैं,
मानव के तन-मन में।

साँसों का आना-जाना ही,
जीवन कहलाता है।
साँसों के रुकते ही मानव,
मुर्दा बन जाता है।

साँसों का सब लेखा जोखा,
परमपिता रखता है।
जो जैसा करता जीवन में,
वैसा फल चखता है।

तूने जितना जीवन पाया,
उतनी साँसें तेरी।
रखना साँसों को सँभाल कर,
हो ना जाए देरी?

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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