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रहें ना रहें हम

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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रहें ना रहें हम फिर भी
हमारा निशान रह जाएगा!

जो बीज रोपे थे
बड़े अरमानों के साथ,
उनमें खिलते पुष्पों की
खुशबू में मेरा पता मिल जाएगा।
उसमे सिंचे थे कुछ संवेदनाएं,
कुछ भावनायें उन्हीं में
मेरा निशान मिल जाएगा!!

जिस वृक्ष को सींचा था जतन से
उसका एक भी आखिरी
पत्ता जो हरा रह जाएगा,
उसकी निर्मलता में मेरा
निशान मिल जाएगा!!

कभी जो बैठना सूकून से
पंछियों के कलरव
और तान सुनना
उनके सुर के संगीत में
मेरा निशान मिल जाएगा!

कल कल बहती रही
जीवन भर एक नदी की तरह
जो कभी बैठो उसके
तट पर, चंद लम्हों के लिए,
उसकी गहराईयों में
मेरा निशान मिल जाएगा।।

खुद के भीतर इन्सानियत
को जिंदा रखना
कभी जो सुनना किसी
जीव की दर्द भरी कराहटें,
उनकी करुणा भरी पुकार,
उस दर्द में
मेरा पता मिल जाएगा!!

अपने सपनो से
सच्ची मोहब्बत करना
जीवन को ममता और
प्यार से सहेज कर रखना
जो मिलेगें मुस्कराते
जीव कहीं तुमको
उनकी निश्चल मुस्कान में
मेरा निशान मिल जाएगा!!
उन्हीं में
मेरा पता भी मिल जाएगा!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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