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साँसों का क्या ठिकाना

गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी”
बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश)
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कृतघ्न हुए अब लोग यहां,
स्वार्थी हुआ जमाना है,
जियो जीवन हिलमिल,
साँसों का क्या ठिकाना है।

छोड़ो चलना चाल कुटिल,
ह्रदय रखो गंगा जल सा
बनो नीम से कडुवे बेशक़,
रखो ना उर बेर फल सा।

मुट्ठी भर माटी के लिए,
कर न दुर्योधन-सा व्यवहार,
बल का बल निकल जाता,
अर्जुन भी हुआ लाचार ।

समझ न मूर्ख किसी को तू,
जान स्वंय को ज्ञानवान,
द्रोपदी-सी तेरी गर्हित हसी,
ले डूबे ना कहीं पहचान।

भुला भलाई अपनापन,
सिमट गया क्यों स्वंय तलक,
मिला न दें गर्दिश में तुझे,
गैरों को मिटाने की ललक।

भला चाहते हो ग़र अपना,
रखना रवि-सा सम भाव ,
भर जाते हैं ज़ख्म तेग के,
पर भरते न वाणी के घाव।

परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी
निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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