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आखिर किसे स्वीकार है (ताटंक)

विजय गुप्ता “मुन्ना”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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जानकर अंजान बनना तो खुद का दारोमदार है।
पर अन्य को दोषी बताना, आखिर किसे स्वीकार है।
समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहार है।
क्षमता नियंत्रण पहचान का बस नाम मुन्ना रफ्तार है।

जनहित कल्याण मार्ग खातिर धरातल वाली सोच हो।
यथेष्ठ दायित्व पालन में, धृष्टता का ना लोच हो।
रहे लाभार्थी पर नजर यूं, उसको तनिक ना मोच हो।
भान सदा गरीब को होता, जब कष्टों की भरमार है।
पर अन्य को दोषी बताना, आखिर किसे स्वीकार है।
समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहार है।

शोर छिपा है अरमानों में, अलग तादाद ही बसता।
जगमग दिव्य रोशनी में भी, खामोशी से सब सहता।
सुखदुख सचझूठ मध्य बैठा, प्रदर्शन से घिरा रहता।
पांच सदी पश्चात त्रेतायुग सा अयोध्या दरबार है।
पर अन्य को दोषी बताना , आखिर किसे स्वीकार है।
समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहार है।

विद्वान साहस बल वरदानी, अहंकार को जगा दिया।
तीन लोक स्वामी भी भूला, मां सीता को भगा दिया।
अलख निरंजन कहनेवाला, ज्ञान लक्ष्य से दगा किया।
माना ज्ञान सदा रावण ने, श्री राम हरि अवतार हैं।
पर अन्य को दोषी बताना, आखिर किसे स्वीकार है।
समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहार है।

जानकर अंजान बनना तो खुद का दारोमदार है।
पर अन्य को दोषी बताना, आखिर किसे स्वीकार है।
समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहार है।
पहचान क्षमता नियंत्रण का बस नाम मुन्ना रफ्तार है।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता “मुन्ना”
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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