अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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मन की मनोदशा दिखलाने,
तन मन जो करता है।
भाव भंगिमा से औरों का,
पल में मन हरता है।
भाव भंगिमा देह जनित गुण,
मानव दर्शाता है।
मनोभाव मानव निज मन के,
तभी दिखा पाता है।
भावभंगिमा से अंतस का,
भाव समझ में आता।
हाव-भाव दिखलाकर सबको,
सुख-दुख मनुज बताता।
मन की दशा दिशा दिखलाने,
जो प्रयत्न करता है।
भाव भंगिमा दिखला कर ही,
मन धीरज धरता है।
घृणा-प्यार दिखलाती है यह,
अपनापन दिखलाती।
भाव भंगिमा मन की पीड़ा,
बिना कहे कह जाती।
भाव भंगिमा लख राघव की,
जनक सुता हरषानी।
गौरी पूजन से वर पाया,
प्रमुदित हुई भवानी।
भाव भंगिमा मोहित करती,
पीड़ा भी पहुँचाती।
भाव भंगिमा मानव मन को,
हर्ष विषाद दिलाती।
भाव भंगिमा से हम सब के,
मन को मोहित कर लें।
सुभाशीष पाकर अपनों का,
खुशी हृदय में भर लें।
परिचय :– अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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