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मुलाकात अपने आप से

डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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मैं सोचता हूँ,
कभी मुलाकात कर लूँ
अपने आप से।
पकड़ लूँ गिरेबान
और मिला लूँ आंखे
अपने अहम से।
मैं हूं बड़ा बदतमीजी,
कूट-कूट कर भरा है
अभिमान मुझ में।
बस पहचान का
फितूर चढ़ा है
खाली दिमाग में।
ईर्ष्या द्वेष द्वन्द्व जैसे
साथी संग खड़े हैं
मन के मरुस्थल में।
है विडम्बना कैसी,
मेरे मन से कम
खारापन सागर में।
मैं अपनी बतला दूं,
नैतिकता कहीं दूर खड़ी
भाव-भावना बिखरी सी।
गुण पर भारी अवगुण,
दग्ध हृदय संताप भरा
जीवन लीला घिरणी सी।
खंडित आभासी वैभव,
मोह माया संलिप्त
दम्भ में ऐंठे रहता हूं।
लघुतर मानू और को,
मैं मगरूर आत्मश्लघा
अहं में डूबा रहता हूं।
मैं सोचता हूँ,
कभी मुलाकात कर लूँ
अपने आप से।
पकड़ लूँ गिरेबान
और मिला लूँ आँखें
अपने आप से।

परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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