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ज्ञान एवं अज्ञानता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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ज्ञानी-अज्ञानी में केवल
एक मात्रा का अन्तर है
जो मनुष्य के साथ निरंतर है
ज्ञानी मृत्यु की वास्तविकता
को सहज रूप मे लेता है
अज्ञानी संसारी होता है
मृत्यु पर क्रंदन करता है!
ज्ञान रोने के कारण
को मिटा देता है
अज्ञान नित नए
रोने के कारणों में
उलझता जाता है ,
ज्ञानी हर परिस्थिति
में प्रसन्नचित्त होता है
वो जानता है समझता है,
जो कुछ भी छूट
रहा वो मेरा नहीं
इस जनम में कुछ
भी “मेरा-तेरा” नहीं
एक अखंड सत्य है
आत्मा का आना जाना
परिवर्तन, शाश्वत
सत्य है, समझता है!
संसारी रूदन करता है,
जो कुछ मिला वो उसे
अपना अधिकार समझ,
स्वयं के परिणामों के
फलस्वरुप प्राप्त किया,
यही समझता है,
जो कुछ छूट रहा
उस पर अपना ही
प्रभुत्व मान रुदन करता है,
यही ज्ञानी-अज्ञानी में
भेद का कारण होता है
यही अशांति को जन्म देता है
क्यूँ मुढता में जीवन व्यर्थ करें
मूढ़ता में ज्ञान की ज्योति
जगाने का प्रयत्न करें
प्रत्येक परिस्थितियों में
प्रसन्न होने का प्रयास करें,
जो अखंड सत्य है उसे स्वीकार करें
अज्ञानता में ज्ञान
का सिरा कहीं
पीछे छूट जाता है!

जो बीत गया उसे
सुधारने के बदले,
सुन्दर भविष्य का
निर्माण करें!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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