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सही मैं हमेशा से हूं

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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मुझे बचपन से
छोड़ दिया गया था
अपनों से दूर
गैरों के घर,
मजबूरन हो रहा
था मेरा बसर,
मेरे ही पिता का
दिया वे भी खा रहे थे,
पर मुझे हरामखोर
कह नित गरिया रहे थे,
खैर मुझे सहना ही था,
उन्हीं के साये में
रहना ही था,
दूसरों के घर रहना
खाना मेरी
गलती नहीं थी,
बड़ा हुआ तो देखा
हालात बदला हुआ,
भावनाएं अभी
था मचला हुआ,
लगना पड़ा घर
को संभालना,
सभी सदस्यों को
काम कर पालना,
विवाह, बच्चे के बाद भी
कोई सुख नहीं देखे,
नहीं चिंता गांव
समाज को लेके,
पढ़ा लिखा था
तो मिला नौकरी,
करने लगा
सरकारी चाकरी,
न कोई बुराई
न कोई लत था,
बताओ मैं
कहां गलत था,
संपूर्ण परिवार को
खुद संभाला,
सबने अलग कर
घर से निकाला,
बराबर होती रही बुराई,
किसी को याद न रहा
मेहनत और कमाई,
आई रिश्तों में दरार
और गफ़लत था,
आप ही बताओ मैं
कहां व कितना गलत था।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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