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बेरोजगार चालीसा

अभिषेक मिश्रा
चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश)
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नमो-नमो बेरोजगार युवाओं।
तुम्हारो दर्द न कोई जानों।।

नमो नमो बेरोजगार युवाओं।
ऐसे ही तुम बेगार रह जाओ।।

हमने समझा तुम सब बेकार हो।
पर तुम तो सबसे घातक प्रहार हो।।

जब से तुम घर से बाहर निकले हो।
उस दिन से घर की है रोशनी भागी।।

पूरी दिन-रात तुम मेहनत करते हो।
कर पढ़ाई-लिखाई परीक्षा देते हो।।

फिर भी न होत है तुम्हरी भलाई।
दूर न जात हैं ये बेरोजगारी बलाई।।

बेरोजगार चालीसा जब कोई भी गावे।
ऐसा लगे सबके कान में ठेपी घुस जावे।।

तुम्हरे हाथ में है पूरी देश दुनिया।
पर तुम्हरा दर्द न कोई सुनत है।।

बेरोजगारी वंदना जो नीत गावे।
जीवन में वो कभी हार न पावे।।

हैं हथियार ये दोनों हाथ तुम्हारा।
जब चाहों तुम किस्मत अजमाना।।

जो नहीं माने रोब तुम्हारा।
तो दिन देखी तिन तैसी।।

जब कभी तुम आवाज उठाते।
लाठी डंडा का प्रहार हो जाते।।

कई-कई वर्ष हों घर से बाहर बिताते।
फिर भी तुमको सब बेरोजगार बुलाते।।

जय जय जय बेरोजगार गोसाई।
करहू उजागर बेरोजगार की बाते।।

हे बेरोजगार बोलो हे बेरोजगार।
कैसे काटत हो घर पर दिन-रात।।

कभी सुनते हो गाली घर वालों की।
तो कभी सुनते हो ताने बाहर की।।

तुम्हरे मन की व्यथा न कोई सुनत है।
चाहे दर्द भरा हो कितना भी दिल में।।

एक दिन हो गइल है काटल पहाड़।
तबहु न सुनत है ई जालिम सरकार।।

तुम्हरो दर्द न समझे है कोई नर-नारी।
जाके बेचो तुम पकौड़ी दुआरी-दुआरी।।

दुई पैसा जब से तुम्हरे पाकिट में आई।
तब जाके समाज में इज्जत बढ़ जाई।।

बुद्धि हीन तनु जानि के छोड़ जात हैं सब।
बल बुद्धि विद्या भरल है फिर भी बेरोजगार।।

बोलो सब बेरोजगार महाराज कि जय।
बोलो सब युवा बेरोजगार की जय।।

परिचय :- अभिषेक मिश्रा
निवासी : ग्राम-चकिया, तहसील- बैरिया, जिला-बलिया (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा : एमकॉम
लेखन विद्या : कविता, मौलिक रचना एवं मोटिवेशनल कोट्स।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरा यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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